रूह की
पुरानी पड़ चुकी
दिवारों की
पपड़ियों को उखाड़ते हुए
वो जानना चाहते थे
पूरा सच...
गालों पर गड्ढे
बनाने वाली
नकली मुस्कान के
पीछे की हकीकत..
और बस इसलिये
युं ही उन्होंने
हमसे दिल लगाया
बहलाया
फुसलाया
और जब उनका
सुरूर हम पर छाया
तो फिर एक दिन
मुस्काते चेहरे पे
चुपचाप थूककर
चले गये वो
जानने के लिये
हमारी शख्सियत का
पूरा सच..
पर बेशर्म शक्ल ये
फिर भी मुस्काती रही
गड्ढे गालों के
दिखाती रही
और
लाख मशक्कत के बावजूद
भी वो जान पाये सिर्फ
'मेरा अर्धसत्य'
अर्धसत्य के पीछे छुपे चेहरे.
ReplyDeleteनई पोस्ट : मिथकों में प्रकृति और पृथ्वी
कोई न देखें, इस अर्धसत्य के पीछे छुपे चेहरे..शुक्रिया प्रतिक्रिया के लिये। आता हूँ आपकी पोस्ट पे।
Deletekatu satya ko rekhankit karti rachna ....
ReplyDeleteआभार आपका प्रतिक्रिया के लिये।।।
DeleteBaat me bahut dam....
ReplyDeleteशुक्रिया आपका।।।
Deleteपर बेशर्म शक्ल ये
ReplyDeleteफिर भी मुस्काती रही
....कुछ तो बात है ....:))
बात तो है ही संजय जी तभी तो ये कविताएं अठखेलियां करती हैं :)
Deleteयूँ ही बीत जाता है समय उनके आने के बाद ... शब्द खो जाते हैं ... वो लेजाते हैं एक अर्ध-सत्य हमेशा कि तरह ... प्रेम कि गहरी भिव्यक्ति ...
ReplyDeleteशुक्रिया दिगम्बर जी...
Deleteअर्धव्यक्त था अर्धसत्य।
ReplyDeleteये अर्धसत्य, अर्धव्यक्त रहे तो ही उत्तम है :)
Deleteकौन जानेग व्यथा इस मौन की !!
ReplyDeleteये व्यथाएं मौन में ही दबी रहें तो अच्छा है कविताएं तो युंही गुस्ताखी करती हैं उन व्यथाओं को मुखर बनाने की :) शुक्रिया प्रतिक्रिया हेतु।।।
Deleteशुक्रिया सुशील जी।।।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है भाई! :)
ReplyDeleteशुक्रिया....
Deleteबहुत बढ़िया..
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