Thursday, September 26, 2013

जिंदगी और मुस्कुराहटें


माना 
कि जिंदगी में
ग़म बहुत हैं

माना
कि आँखें
नम बहुत हैं
माना
कि दिल के दरिया में
दर्द भरा है
माना 
कि हर तरफ बस
बेवशी का पहरा है...


फिर भी सनम!
तुम्हें मुस्कुराना है
ऐ हमदम!
अपने ग़म को हराना है
जिंदगी को महज
गुजरे हुए लम्हों से
लंबी नहीं,
बल्कि
मुस्कुराहटों से
बड़ी बनाना है...


क्युंकि प्रियतम!
जिंदगी भी
बगिया की तरह होती है
और
बगिया को
राहों में बिखरी हुई
पत्तियों से नहीं
खिले हुए
गुलों से आंका जाता है।।

Thursday, September 19, 2013

फर्क नहीं पड़ता

हालात के थपेड़े
जब इस दिल को घेरे
हो हर तरफ जब छाईं
रुसवाईयां
तन्हाईयाँ
दिल में बढ़ रही हो
दर्द की गहराईयाँ...
जब रिश्ते हो टूटे
अपने हो छूटे
चैन कोई लूटे
और बढ़ रही हों पल-पल
लाचारियाँ
बेचारियां
दस्तक दे रही जब
दर पे बेताबियाँ...



फिर भी दिल क्यूँ जाने
आँसू नहीं बहाता
टीस न जताता
दर्द न बताता
जीता ही जाता
बस मुस्कुराता
जाने क्यूँ ये बात
लफ्ज़ पे न लाता...
है टूटा हुआ दिल

बढ़ रही है मुश्किल 
छूटा है साहिल
पर बेशर्म जुवाँ ये
 कैसे कह लेती
कि मुझे कुछ-
'फर्क नहीं पड़ता'

Wednesday, September 4, 2013

खून के घूंट


न जाने कैसे
मर जाते हैं लोग 
भूख से,
प्यास से,
यूँ ही किसी की
आस से,
जबकि 
जीने के लिये
नहीं करना कोई
मशक्कत
और न ही
कोई हरकत..
बस यूँ ही
बैठे-ठाले
न जतन कोई 
निराले
किये बगेर
जी सकते हो 
आप,
बिना 
दाना-पानी के
लगातार 
पीते हुए
खून के घूंट......
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