उस रोज़
शायद कुछ यही तिथि होगी
जब हमने-तुमने की थी
अपने सुर्ख जज़्बात की रज़ामंदियां
और साथ ही हुई थी शुरुआत
उन सपनों के घरोंदो पर
दीवारें बनाने की।
और तकरीबन कर ही ली थी
कोशिश पूरी
उस तामीर को आशियां बनाने की
पर इससे पहले
कि डलती उसपे छत
कुछ समझौतों
रिवाज़ों
और कौमी फरमानों की...
ढह गई वो इमारत!
वर्ग-बिरादरी
और कुछ मिथ्या रस्मों की
आंधियों में।
शायद कुछ यही तिथि होगी
जब हमने-तुमने की थी
अपने सुर्ख जज़्बात की रज़ामंदियां
और साथ ही हुई थी शुरुआत
उन सपनों के घरोंदो पर
दीवारें बनाने की।
और तकरीबन कर ही ली थी
कोशिश पूरी
उस तामीर को आशियां बनाने की
पर इससे पहले
कि डलती उसपे छत
कुछ समझौतों
रिवाज़ों
और कौमी फरमानों की...
ढह गई वो इमारत!
वर्ग-बिरादरी
और कुछ मिथ्या रस्मों की
आंधियों में।
हमारे कसमों-वादों
और अनगिनत अहसासों
का वो मिट्टी-गारा
अब भी वहीं पड़ा है
ज़मीं पर होकर भी
ज़मींदोज होने के इंतज़ार में।
उस न बन सके आशियाने
को जब भी देखता हूँ
उस रास्ते से गुज़रते हुए,
कि ये क्या हो सकता था
और क्या हो गया।
तुम और मैं
अब भी जब-तब
उन आंधियों को ही
जिम्मेदार कहते हैं
उस बिखरे भवन के लिये..
बिना ये देखे-बिना ये जाने
कि
नींव हमारी ही कमज़ोर थी।
कहने को
तेरी-मेरी अपनी ही दुनिया
अपना ही आशियां
और उसपे एक मजबूत छत है
पर उस भवन में
जाने क्युं?
मैं 'तुझे'
और तू 'मूझे'
ढूंढता है।
lagta hai purana dard abhi gaya nahi hai ...
ReplyDeleteताबिश भाई मेरा जबाव मंथन ब्लॉग वाले अभिषेक जैन ने दे दिया है और आप तो जानते ही है विश्व के सर्वोत्तम राग का सृजन दर्द में ही होता है इसलिए सृजनधर्मिता बनाये रखने के लिए सीने के किसी कोने में दर्द को जगाये रखना अच्छा है :)
Deleteदर्द अगर इतनी रचनात्मकता दे दे तो दर्द अच्छा है
ReplyDeleteकमजोर नीव से आशियाना टूटता ही है पर कई बार हिम्मत चाहिए होती है .. समाज से लड़ने की शक्ति ... रिवाजों की आंधियां तो हर समय में रही हैं ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ...
सुन्दर भावयुक्त रचना
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट रचना का उल्लेख सोमवार (20-04-2015) की चर्चा "चित्र को बनाएं शस्त्र, क्योंकि चोर हैं सहस्त्र" (अ-२ / १९५१, चर्चामंच) पर भी किया गया है.
ReplyDeleteसूचनार्थ
http://charchamanch.blogspot.com/2015/04/20-1951.html
आभार आपका :)
Delete
ReplyDeleteवियोग और दुःख ही जनम देते हैं इक खूबसूरत रचना को।
बहुत सुंदर... दिल से निकले जज्बात..
ReplyDeleteबहुत सुंदर और भावपूर्ण.
ReplyDeleteनई पोस्ट : चम्मच नियरे राखिए....
पुरानी चोटें कभी-कभी ज्यादा ही कसकती हैं, दिल है तो दर्द होगा ही। सुंदर अहसास भरी कविता।
ReplyDeletesundar bhavawykti....
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको !
बहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteBhut hi sundar brother.... very very nice
ReplyDeleteदिल से निकले जज्बात.. अंकुर भाई
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें
dunia shayri ki
ReplyDeletebest shayri forever
Two Line Shayri Hindi Kumar Vishwas shayri
very sad shayri Hindi love storys
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