चित्र- गुगल से साभार |
अपने छिले हुए घुटनों को देख
अब भी
बढ़ जाती है चाहत,
अब भी
बढ़ जाती है चाहत,
उन गुजरे रास्तों पे लौटने की..
या फिर उन्हीं रास्तों पर किसी जानवर को देख,
या फिर उन्हीं रास्तों पर किसी जानवर को देख,
होती है ख्वाहिश
कि पकड़लूं पल्लु जोर से एक मर्तबा फिर...
चाहता हूं उम्र के उस दौर में जाना
जहाँ टूटे खिलौनों पर, उजड़े बिछौनों पर
बिजली चमकने पर या बादल गरजने पर
तुम बड़ी आसानी से कह देती थी
'कुछ नहीं हुआ'
कि पकड़लूं पल्लु जोर से एक मर्तबा फिर...
चाहता हूं उम्र के उस दौर में जाना
जहाँ टूटे खिलौनों पर, उजड़े बिछौनों पर
बिजली चमकने पर या बादल गरजने पर
तुम बड़ी आसानी से कह देती थी
'कुछ नहीं हुआ'
और उस बात को सच मान
बड़ी से बड़ी आफत भी
बड़ी से बड़ी आफत भी
मुझे बौनी जान पड़ती थी..
अब भी सपनों के टूटन से,
अब भी सपनों के टूटन से,
अपनों की रूठन पर
आँसू बहाने या किसी के सताने पर
मुझे उसी उंगली और
आँसू बहाने या किसी के सताने पर
मुझे उसी उंगली और
मासूम थप्पी की ज़रूरत होती है
पर अफसोस
इन बचकानी हरकतों को
जमाना कहता है नासमझी मेरी
और बस इस लिये अब कुटिल, झूठा और कठोर हो
इन बचकानी हरकतों को
जमाना कहता है नासमझी मेरी
और बस इस लिये अब कुटिल, झूठा और कठोर हो
मैं छुपा लेता हूं अपनी तमाम हसरतें
'माँ'...
मैं कुछ कहूँ या नहीं,
पर अब भी तेरी ज़रूरत
जस की तस बनी है मेरे जीवन में।।।
शुभकामनायें
ReplyDeleteमाँ की जरूरत उमे के साथ ही ख़तम होती है ...
ReplyDeleteमाँ के प्रति आपके भाव को नमन है ... सुन्दर रचना ...
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति....माँ को नमन
ReplyDeleteमाँ के प्रति उदगार ... एक बेटा ही ऐसा सोच सकता है ...भावपूर्ण रचना
ReplyDeletebahut sunder rachna
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