Thursday, March 13, 2014

बेअसर रंग

अबकी होली
हमने भी कुछ
उन्हें रंगने का मन
बनाया था
लफ्ज़ो की पिचकारी में
कुछ अहसासों का
रंग मिलाया था
अपने उन रंगों में अब
उनको खूब भिगोना था
उनको मुझ जैसा करना
बस,
इक ऐसा स्वप्न
सलोना था.…


यही सोच फिर हमने 
उनपे, दी उड़ेल 
हरी-भरी गुलाल
और
किया फिर उन रंगों से 
उनका बड़ा हाल-बेहाल
रंग-गुलाल-नीर-पिचकारी 
से रंगा उन्हें हमने 
जी-भरकर
बड़ी ख़ुशी थी हमें 
इसतरह,
उन्हें अपने रंगों में 
रंगकर… 

पर इस ख़ुशी का 
गुरूर 
तनिक ही देर में 
चकनाचूर हुआ
उनकी रूह को रंगे 
जो खुद से,
हर रंग इसमें 
मजबूर हुआ.… 
उन लफ्ज़ और अल्फ़ाज़ों ने 
बस,
किया ऊपरी लागलपेट 
लफ्ज़ो में डूबे जज्बातो की 
हुई बड़ी फिर मटियामेट

और इस तरह 
फिर इक फागुन 
गया हमारा कोरा बीत 
ज़िस्म भिगोया उन रंगों ने 
रूह रह गई किन्तु रीत।।।
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