कविता करना
कोई मजाक नहीं,
जो हम-से नौसिखिए कर सकें
ये तो एक साधना है,
जो संगिनी है साधकों की
बेचैन हूँ मैं,
पर मैं कोई कवि नहीं।।
दोस्त हो जाते हैं दूर
तो कागजों से बातें करता हूँ
अल्फाज़ों के जरिये,
पर मैं कोई कवि नहीं।।
जब भर जाता है दिल,
दर्द से लबालब
और छलकने लगता है
रूह के प्यालों से
शराब बनकर,
तो फैल जाता है वो
इन कागज़ों की जमीं पर,
पर मैं कोई कवि नहीं।।
जब अपनों की दग़ा से
प्रियतम की झूठी वफ़ा से
जगता है मन में रोष
तो इन कागज़ों के समंदर में
शब्दों के पत्थर फेंक देता हूँ,
पर मैं कोई कवि नहीं....
बेहतरीन रचना और सुंदर अभिव्यक्ति .......!!
ReplyDeleteधन्यवाद रंजनाजी..
Deleteमन जब भर आता है, छन्द बन कर निकल जाता है।
ReplyDeleteसही कहा प्रवीणजी...
Deleteबहुत खूब,सुंदर अभिव्यक्ति,,,शुभकामनाए,,,,
ReplyDeleteवर्डवेरीफिकेशन,हटा ले कमेंट्स करने में देरी और परेशानी होती है,इस पर ध्यान देगें,,,,
RECENT POST : अपनी पहचान
जी धीरेन्द्रजी...धन्यवाद मुझे इसकी जानकारी देने के लिये...
Deleteइन बैचेनोयों को निकालने का सही जरिया ढूँढा है आपने ...
ReplyDeleteलाजवाब कविता है ... शुभकामनाएं ...
धन्यवाद नासवाजी..
Deleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद सुज्ञजी
ReplyDeletelajawab-***
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया आपका...
Deleteमैं तो कद्रदान हूँ इन बेचैनियों का ,,इनमें मेरी सुनेहरी यादों का डेरा है ...
ReplyDeleteखुश रहें !
हर किसी का डेरा है इन बेचैनियों में...बहुत-बहुत शुक्रिया आपका...
Deleteभाव अभिव्यक्ति सुंदर है ..
ReplyDeleteशुभकामनायें !
बहुत-बहुत शुक्रिया आपका...सतीशजी।।।
Deleteभाव ही कविता है और हर इंसान जो रो सकता है... घटित हो सकती है उसके यहाँ कविता...!
ReplyDeleteभावाभिव्यक्ति निरंतर चलती रहे!
शुक्रिया अनुपमाजी...अभिव्यक्ति जारी रहेगी।।।
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया आपका...
Deleteबहुत खूब,सुंदर अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया आपका...
Deleteबहुत-बहुत शुक्रिया आपका...
ReplyDeleteगुलदस्ते में फूल अच्छे है ...
ReplyDeleteबेहतरीन भावना अभिव्यक्ति है फिर छंद क्यों नहीं लिखते ? लोग गुनगुनायेंगे अंकुर , योग्यता को क्या झिझक ?
ReplyDeleteमंगलकामनाएं !