मेरी सास को,
बॉस को..
मेरी झपकियों से
ऐतराज़ है
क्यूँ?
क्योंकि उन्हें
परवाह है मेरी...
जी हाँ,
परवाह है
मेरे काम की
न कि आराम की
बस! इसलिये
ऐतराज है उन्हें
मेरी झपकियों से
मेरी सिसकियों से।
ससुराल में
गुजरते हुए
हर साल में
बस बढ़ती रहती है
मेरी बेचैनियाँ
मैं हूँ बस एक
'रोबोट'
इस जहाँ के लिये
जिसमें न हैं
अहसास,
तमन्नाएँ,
न ही भावनाएँ कोई..
और करना है अपना काम
बिना थके
बिना रुके
बिना झुके
और बस! इसलिये
ऐतराज है उन्हें
मेरी सिसकियों से
मेरी झपकियों से।
कभी दुखता बदन
न सोने देता मुझे
और कभी गर
लग भी जाये आँखे
तो सैंया जगा देते हैं
रातों में
लगा लेते हैं अपनी
बातों में
और फिर,
गुज़र जाती है
मेरी एक और रात
बिना सोये
करवट बदलते
ढूंढती अपनी हस्ती
अपने मन की बस्ती
जहाँ लोग ये माने
कि
औरत बदन के परे भी
कोई चीज़ है....
संवेदनपूर्ण पंक्तियाँ..
ReplyDeleteधन्यवाद प्रवीणजी...
Deleteबहुत सटीक कहा आपने , सुंदर और मार्मिक रचना , शुभकामनाये
ReplyDeleteशौर्य जी धन्यवाद।।।
Deleteपूरी रचना सुंदर और मार्मिक, लाज़वाब है,हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु साधुवाद अशोक जी।।
Deleteबेहतरीन.... नारी संवेदना से भरी हुई......
ReplyDeleteशुभकामनायें!!
धन्यवाद रंजना जी।।।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteनारी मन की संवेदना को बखूबी उकेरा है आपने
ReplyDeleteबहुत खूब!
शिवनाथ जी शुक्रिया।।।
Deleteन ही भावनाएँ कोई..
ReplyDeleteऔर करना है अपना काम
बिना थके
बिना रुके
बिना झुके
और बस! इसलिये
ऐतराज है उन्हें
मेरी सिसकियों से
मेरी झपकियों से।
बहुत सुंदर, औरत के मन को समझती सी रचना ।
शुक्रिया आशाजी।।।
ReplyDeleteशुक्रिया सुशील जी...
ReplyDeleteअभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
ReplyDeleteधन्यवाद संजयजी...
DeleteIndeed you speak for a woman's heart
ReplyDeleteThank you vandana ji for your comment :)
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