घनघोर असंतुष्टि,
अतृप्ति
और महसूस किये
किसी अव्यक्त दर्द से
पैदा होते हैं
कुछ बेतरतीब से शब्द,
लिबास पहन बन जाते हैं
महसूसियत के फरमान।
और दिखने लगते हैं
कुछ-कुछ कविता जैसे
जिन्हें पढ़-लिख, सुन-सुना
करने लगता हूँ मैं गुमान
खुद के शायर होने का,
और भ्रम के किसी
खयाली आकाश में
हो जाता हूँ तृप्त
कागज़ों से अपने ज़ख्म पोंछकर।
किंतु ये सृजन का भ्रम
बस चंद लम्हों के लिये ही
मेरी तृष्णा को दुलारता है
और फिर यथार्थ का कड़वा सच
कर देता है मेरे ज़ख्मों को हरा
जिससे प्रेरित हो
कर बैठता हूँ मैं
पुनः एक और
'सृजन'
अतीत के असंख्य अहसासों
और उनसे पैदा
इन फजूल के अल्फाजों की
भूलभूलैया में
उलझा हुआ
मैं अपना वर्तमान नहीं
सुलझा पाता।
उन ज़ंग लगे जज़्बात से
भले हो रहा है
'सृजन'।
पर
अवरुद्ध इसने कर दिया
स्वयं का निर्माण
अब।
गौर से देखो
तो जरा!
असल में
इस बंजर भूमि पे पड़े
'अंकुर' से
नहीं निकलती कोई
सृजन की पौध।
Bhavmay shabd sanyojan.....
ReplyDeleteअंकुर से कोपल नहीं फूटती भाई, बीज से फूटती है, अंकुर और कोपल एक ही चीज है
ReplyDeleteजी शुक्रिया। आपके बताये अनुसार सुधार कर लिया है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना …
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteभ्रम ही सही पर मन का कुछ अवसाद तो निकल ही जाता है और एक नया हौसला आ जाता है आगे बढ़ने का . खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है .
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर रचना
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर रचना
ReplyDeletebahot hi sunder rachna............!!!!!!
ReplyDeleteअत्यंत भावपूर्ण रचना ... होंसला मिलना जरूरी होता है ...
ReplyDeletedunia shayri ki
ReplyDeletebest shayri forever
Two Line Shayri Hindi Kumar Vishwas shayri
very sad shayri Hindi love storys
Two Line Shayri Hindi sad shayri
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बहुत अच्छे whatsapp awesome
ReplyDeleteसंग्रह योग्य... dhnyavad
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