उस रोज़ जब
रेलवे स्टेशन पर
वो आई थी छोड़ने
अपने इकलौते बेटे को
तो
उसने अपने दोस्तों के आने से पहले
कहा था अपनी माँ से
लौट जाओ तुम यहाँ से।
माँ की फटी साड़ी,
पैरों में घिसी चप्पल
और उसका थका चेहरा
पहुंचा रहा था शायद
उस बेटे की
इज्जत को ठेस।
रेलवे स्टेशन पर
वो आई थी छोड़ने
अपने इकलौते बेटे को
तो
उसने अपने दोस्तों के आने से पहले
कहा था अपनी माँ से
लौट जाओ तुम यहाँ से।
माँ की फटी साड़ी,
पैरों में घिसी चप्पल
और उसका थका चेहरा
पहुंचा रहा था शायद
उस बेटे की
इज्जत को ठेस।
पर वो बेशर्म माँ,
देखना चाहती थी
अंतिम घड़ी तक
अपने लाड़ले बेटे का मुखड़ा
ट्रेन के छूट जाने से पहले।
एक थैली में
अचार-पापड़ का डिब्बा,
बेसन के लड्डू
और कुछ पूड़ियों के संग
रखी थीं उसने गर्मी से बचने की हिदायतें
उस रोज़।
पर,
इन तमाम हिदायतों से परे
वो बस भगा देना चाहता था
अपनी माँ को उस स्टेशन से दूर।
फिर क्या,
अपने बेटे की जिद से मजबूर
वो माँ चल दी वहां से
पर जाते-जाते भी कहती रही
कि न निकलना धूप में बाहर
न खाना होटलों का बासा खाना
और लौट आना परीक्षा के बाद तुरंत ही।
माँ की इन नसीहतों पर झल्लाकर
आखिर उसकी जुवां ने यह कह ही दिया
'मैं कोई बच्चा नहीं..अब जाओ भला यहाँ से'
कुछ रोज़ बाद
शायद मदर्स डे पर
की पोस्ट फेसबुक पे उसने,
माँ के साथ ली गई एक सेल्फी...।
और किसी शायर की शायरी के साथ
लिखा नीचे उसके
"वर्ल्ड्स बेस्ट मॉम"
हकीकत को बयाँ करती खूबसूरत रचना।
ReplyDeleteस्वयं को औरों के जैसा ही दिखाने की मजबूरी कहें या अपने हकीकत को नकारना। भावपूर्ण प्रस्तुति।
ReplyDeleteस्वयं को औरों के जैसा ही दिखाने की मजबूरी कहें या अपने हकीकत को नकारना। भावपूर्ण प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुंदर और भावपूर्ण
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण ... संवेदनशील अभिव्यक्ति है ...का के प्रति समर्पण ही ऐसे भाव जागृत करता है ...
ReplyDeleteमाँ आखिर माँ होती है...माँ के जैसा दुनिया में कोई भी नही है .....आपने अपनी इस रचना में माँ का वर्णन किया है ..जिससे इस रचना में अपनाप जान सी आ गयी है...ऐसी ही रचनाओं को आप शब्दनगरी में प्रकाशित कर सकतें हैं...
ReplyDeleteमाता कुमाता न भवति - पुत्र के लिये क्या कहें ...
ReplyDeleteयही आज के पीढ़ी की कड़वी सच्चाई है। सुंदर प्रस्तुति।
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