Saturday, May 24, 2014

फिर इक बार...

चलो फिर करते हैं
कुछ बेबुनियाद सी बातें
जिनमें न कोई अर्थ हो
न भावों का गर्त हो
न लम्हों का विवर्त हो
भले भ्रम का ही आवर्त हो...

फिर इक बार चलते हैं
जज़्बातों के उस सफ़र में
जहाँ जागा दिल में प्यार हो
तुमसे मिलने का इंतज़ार हो
मुश्किल से फिर इज़हार हो
और लवों पे इकरार हो....

चलो पीते हैं फिर 
वो यादों भरा अर्क का प्याला
जहाँ बार-बार लड़ाई हो
तुमसे रुसवाई हो
हंसी और रुलाई हो
मिलन हो-जुदाई हो...

हाँ चलो न! छूते हैं फिर
उस बेसुधी के गगन को
जहाँ उनींदी आंखो से दिल परेशान हो
बेहुदी आदतें करती हैरान हो
रतजगों के बावजूद खुशनुमा विहान हो
नासमझ ख्वाबों का अपना आसमान हो....


पर क्या बाकई अब लौटना मुमकिन होगा
या बेरहम हक़ीकत भरा ही हरदिन होगा
अब लौटना है उसी भ्रम की धरा पे
जो हो समझ व वैभव के सख़्त यथार्थ से दूर
और हो उन्हीं नादानियो के रस से भरपूर
पर अफ़सोस हम अपने असल में ही
कुछ ऐसे जड़ गये
मानो जीते-जी ही 
किसी ताबूत में गड़ गये
मौकापरस्ती की लत में हो अंधे 
न जाने क्युं इतना, हम आगे बढ़ गये...
न जाने क्युं  इतना, हम आगे बढ़ गये।।।

8 comments:

  1. इस उम्र में इतनी बेचैनी अच्छी नही ...खुशगवार मौसम की झड़ी लगी है आगे आपके वास्ते ...ज़ज़्बात सुंदर है ..शुभकामनायें !

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  2. आदरणीय अंकुरजी,
    आपकी हर रचना श्रेश्ट होती है परन्तु आप Search Engine का ध्यान नहीं रखते । अछे Search Result के लिये किसी भी पोस्ट का पहला paragraph बिना किसी break का होना अछा रहता है ।

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  3. पहला Paragraph कम से कम 480 अक्षर(Characters) का होना भी आवश्यक है । कृपया अपने पाठकों से निवेदन करें कि 120 Characters से कम का comment Google Standards के मुताबिक मान्य नहीं होता है अौर Page rank decision में Reject हो जाता है ।

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  4. Very nicely done. It touches the heart and makes it want to relive those forgotten memories.

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  5. बेहद सुंदर। कितना बढिया लिखते हैं आप।

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  6. बहुत सुन्दर लिखा है..

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  7. न जाने क्युं इतना, हम आगे बढ़ गये...
    न जाने क्युं इतना, हम आगे बढ़ गये।।।

    नवीन उत्साह का संचार करती हुई रचना.प्रत्येक पंक्ति !!

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