Friday, August 9, 2013

डिस्टर्ब

वो 
आते-मुस्काते
बतियाते-खिलखिलाते
पर जाते-जाते
जाने ये क्यूं कह जाते
कि कहीं हमने आपका कीमती,
वक्त तो नहीं लिया..
कि कहीं हमने आपको
डिस्टर्ब तो नहीं किया।


फिर क्या था,
धीरे-धीरे 
हम उनके डिस्टर्ब करने 
में खोने लगे
और
उनके डिस्टर्ब न करने से
और भी ज्यादा डिस्टर्ब 
होने लगे
पर वो अब भी न समझे
और हमसे ये कहते रहे
कि कहीं हमने आपका कीमती,
वक्त तो नहीं लिया..
कि कहीं हमने आपको
डिस्टर्ब तो नहीं किया।


पर हमें भी समझ न ये आये
जो जाके उन्हें बताए
कि सांसों के चलने से
हसरत मचलने से
दिल के धड़कने से
कोई 'डिस्टर्ब नहीं होता'।।

19 comments:

  1. बेचैनियों का सबब ...बस येही है !
    पता तो चला ही लिया ,,मुबारक हो :-))

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    1. अशोकजी आपका अंदाजा गलत है..बस ऐसे ही लिख दी गई ये कविता :-))
      वैसे आभार आपकी प्रतिक्रिया के लिये...

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  2. शायद हमने जुड़ाव को दखलंदाज़ी समझ है ..... बढ़िया लिखा है....

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    1. शुक्रिया मोनिका जी...

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  3. कि सांसों के चलने से
    हसरत मचलने से
    दिल के धड़कने से
    कोई 'डिस्टर्ब नहीं होता'।।

    लाजबाब अभिव्यक्ति,,,,

    RECENT POST : तस्वीर नही बदली

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    1. शुक्रिया धीरेन्द्र जी...

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  4. Beautifully written!
    Remain undisturbed with all the lovely intrusions!

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    1. absolutely right anupamaji...thnx 4 ur cmnt :)

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  5. बहुत बेहतरीन लिखा...

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    1. शुक्रिया रंजना जी।।।

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  6. सच है, मन की स्थिति है..अब कोई नहीं आये तो मन व्यथित हो जाता है।

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    1. बिल्कुल सही प्रवीणजी..अकेलापन खुद अपने आप में एक डिस्टर्बेंस है...

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  7. क्या बात है ... जहां सांसों की बात हो वहां तो संजीवनी हैं उका डिस्टर्ब करना भी ...

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    1. धन्यवाद दिगम्बर जी..

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  8. सांसों के चलने से
    हसरत मचलने से
    दिल के धड़कने से
    कोई 'डिस्टर्ब नहीं होता'
    बहुत सुन्दर अंकुर जी .मन के भावों को बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया है .

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  9. धन्यवाद...राजीव जी।।।

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  10. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (19.08.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .

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  11. मन के भावों की सुन्दर प्रस्तुति .........कृपा मेरे ब्लॉग पर भी पधारे ......धन्यवाद. ........

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