बादलों के टूटने से
पा गई ये धरा
'जल'
रात के इस बीतने से
पा गई ये सृष्टि
'कल'।
डूबकर सूरज ने दे दी
निशा की शीतल विभा
चोट खा माटी ने जन्मी
फसल की ये हरितमा।।
छूटते जो अंगुलियों से
हर्फ, जब भी कागज़ों पर...
बन जाते तब वे भी
जैसे
काव्य का कोई हार मानो।
रूठते जब अपने कोई
और,
देते जख़्म दिल पर
जग रीत का अहसास
इन रिश्तों की टूटन से
ही जानो।।
ये रूठना, ये टूटना
ये छूटना, ये बीतना
है नहीं ये संकेत
इस जगत में बिखराव का,
डूबा हुआ सूरज
नहीं,
निष्कर्ष है
ठहराव का।
विरह
का हर धुम्र
रखता आग अंदर मिलन की।
जो विसर्जन लगता तुम्हें
वो शुरुआत
एक और सृजन की।
तुम थे कभी,
बदला क्या इस परिवेश में।
था लगा ये
कुछ पलों को
मिटना रहा अब शेष है।।
पर,
वक्त की इस आंच पर
होले-होले
हम भी पक लिये।
टूटकर,
जुड़ने के किस्सों में
लो
हम भी गढ़ लिये।।
इस हुनर का ऐलान अब
हम कर रहे इस जहाँ में
शीशा नहीं हूँ मैं कोई
जो टूटकर है बिखरता।
'अंकुर' हूँ मैं
जो बीज की टूटन
से ही है संवरता।
'अंकुर' हूँ मैं
जो चोट पाकर
ही है अक्सर निखरता।।
बेहतरीन..
ReplyDeleteगूगल फॉलोवर गेजेट लगाइए
सादर
शुक्रिया। जी जरूर लगाता हूँ।
ReplyDelete
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 21 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आभार आपका :)
Deleteकुछ जग बीती कुछ आप बीती ही बन जाती है गंभीर अभिव्यक्ति। सुन्दर रचना। बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत बढिया रचना..
ReplyDeleteबहि सुन्दर..।
ReplyDeleteटूटकर,
ReplyDeleteजुड़ने के किस्सों में
लो
हम भी गढ़ लिये।।
........बहुत खूब बहुत दिनो के बाद आपको लिखते देखकर खुशी हुई।
अगर आपको ब्लॉगिंग का शौक है और आप चाहते हैं कि आपके ब्लॉग को और भी ज़्यादा लोग पढ़ें तो आप हमें अपना ब्लॉग featuresdesk@gaonconeection.com पर भेज सकते हैं। हम इसे अपनी वेबसाइट www.gaonconnection.com और अख़बार गाँव कनेक्शन में जगह देंगे।
ReplyDeleteधन्यवाद...)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (07-05-2017) को "मिला नहीं है ठौर ठिकाना" (चर्चा अंक-2963) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (07-05-2017) को "मिला नहीं है ठौर ठिकाना" (चर्चा अंक-2963) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
सुंदर रचना
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