साथ हम चल रहे थे
इक सफ़र में
इक डगर में
गुस्ताखियों का सिलसिला
फिर युँ ही कुछ बढ़ने लगा
हमारे सर चढ़ने लगा.…
और
हो गई नादानियाँ
बढ़ गई बेचैनियाँ
और गलतफहमियाँ
फिर
रास्ते बदल गये
वास्ते बदल गये
और वो यूँ ही चले गये
खामोश लफ्ज़ो से भरे
अहसास हम कहते रहे
पर अल्फाज़ वो सुनते रहे.…
इक सफ़र में
इक डगर में
गुस्ताखियों का सिलसिला
फिर युँ ही कुछ बढ़ने लगा
हमारे सर चढ़ने लगा.…
और
हो गई नादानियाँ
बढ़ गई बेचैनियाँ
और गलतफहमियाँ
फिर
रास्ते बदल गये
वास्ते बदल गये
और वो यूँ ही चले गये
खामोश लफ्ज़ो से भरे
अहसास हम कहते रहे
पर अल्फाज़ वो सुनते रहे.…
फिर रास्तों के बीच में
इक कारवां ऐसा मिला
टूटा हुआ ये सिलसिला…
पर,
मौका मिला
वो खो गया
और
हो गये फिर हम जुदा
वो हो गये मेरे खुदा
पर मुझसे ही क्यु गुमशुदा
वो मिले,
मिलकर चले गये
हालात से हम छले गये.…
और आखिर ये हो भी क्यों न!
खामोश लफ्ज़ो से भरे
अहसास हम कहते रहे
पर अल्फाज़ वो सुनते रहे.…
वाह।। बहुत सुंदर...
ReplyDeleteGratitude :)
Deleteहम मौन थे वे मुखर थे
ReplyDeleteहम महसूस करते रहे, वे गुनगुनाते रहे
सुंदर..आपसे ऐसी ही किसी प्रतिक्रिया की अपेक्षा होती है।।। :)
Deleteसुंदर !
ReplyDeleteआभार..
Deleteफिर नये कारवां कि तलाश...... सुन्दर
ReplyDeleteतलाश कब ख़त्म होती है..आभार प्रतिक्रिया हेतु।
Deleteमिलकर चले गये
ReplyDeleteहालात से हम छले गये.…
और आखिर ये हो भी क्यों न!
खामोश लफ्ज़ो से भरे
अहसास हम कहते रहे
पर अल्फाज़ वो सुनते रहे.…
sunder panktiyan
rachana
शुक्रिया रचनाजी...
Deleteमौके दुबारा भी आयेंगे ... अबके हात बढ़ा के थाम लेना ... रोक लेना उस लम्हे को .. भावों की अभिव्यक्ति प्रबल है ...
ReplyDeleteगुज़रे लम्हें कहाँ लौटते हैं नासवाजी...बहरहाल ये सिर्फ एक कल्पनात्मक भावाभिव्यक्ति ही थी ये असल ऐसा कतई नहीं..शुक्रिया सुंदर प्रतिक्रिया हेतु।।।
Deleteकुछ खोना, कुछ पाना,
ReplyDeleteफिर भी बढ़ते जाना।
जी बिल्कुल..ज़िंदगी का सच भी यही है..शुक्रिया।।।
Deleteबहुत खूब,भावपूर्ण सुंदर रचना...!
ReplyDeleteRECENT POST - फागुन की शाम.
शुक्रिया..आता हूँ आपकी चौखट पे।।।
Deleteबहुत खूब!!!
ReplyDeleteThank you Sangeeta Di :)
Deleteसबसे बड़ी मुश्किल ....मैं एहसास लिखता हूँ ....वो अलफ़ाज़ पढ़ते हैं ...सही कहा है ,किसी ने ......
ReplyDeleteजी इसी कथ्य को आधार बनाकर ये कविता का सृजन हुआ है...शुक्रिया आपका।।।
Deleteजोड़ सकता था जो आके
ReplyDeleteटूटा हुआ ये सिलसिला…
पर,
धोखा यहाँ भी हो गया
....गजब के जज्बात।
बेहतरीन... बेमिसाल.... लाजवाब....
आभार संजय जी।।।
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