Monday, February 24, 2014

अहसास और अल्फाज़

साथ हम चल रहे थे
इक सफ़र में
इक डगर में
गुस्ताखियों का सिलसिला
फिर युँ ही कुछ बढ़ने लगा
हमारे सर चढ़ने लगा.…
और
हो गई नादानियाँ
बढ़ गई बेचैनियाँ
और गलतफहमियाँ
फिर
रास्ते बदल गये
वास्ते बदल गये
और वो यूँ ही चले गये
खामोश लफ्ज़ो से भरे
अहसास हम कहते रहे
पर अल्फाज़ वो सुनते रहे.…

फिर रास्तों के बीच में 
इक कारवां ऐसा मिला 
जोड़ सकता था जो आके 
टूटा हुआ ये सिलसिला… 
पर,
धोखा यहाँ भी हो गया 
मौका मिला
वो खो गया
और
हो गये फिर हम जुदा 
वो हो गये मेरे खुदा 
पर मुझसे ही क्यु गुमशुदा 
वो मिले,
मिलकर चले गये 
हालात से हम छले गये.… 
और आखिर ये हो भी क्यों न!
खामोश लफ्ज़ो से भरे 
अहसास हम कहते रहे 
पर अल्फाज़ वो सुनते रहे.…

22 comments:

  1. वाह।। बहुत सुंदर...

    ReplyDelete
  2. हम मौन थे वे मुखर थे
    हम महसूस करते रहे, वे गुनगुनाते रहे

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुंदर..आपसे ऐसी ही किसी प्रतिक्रिया की अपेक्षा होती है।।। :)

      Delete
  3. फिर नये कारवां कि तलाश...... सुन्दर

    ReplyDelete
    Replies
    1. तलाश कब ख़त्म होती है..आभार प्रतिक्रिया हेतु।

      Delete
  4. मिलकर चले गये
    हालात से हम छले गये.…
    और आखिर ये हो भी क्यों न!
    खामोश लफ्ज़ो से भरे
    अहसास हम कहते रहे
    पर अल्फाज़ वो सुनते रहे.…
    sunder panktiyan
    rachana

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया रचनाजी...

      Delete
  5. मौके दुबारा भी आयेंगे ... अबके हात बढ़ा के थाम लेना ... रोक लेना उस लम्हे को .. भावों की अभिव्यक्ति प्रबल है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. गुज़रे लम्हें कहाँ लौटते हैं नासवाजी...बहरहाल ये सिर्फ एक कल्पनात्मक भावाभिव्यक्ति ही थी ये असल ऐसा कतई नहीं..शुक्रिया सुंदर प्रतिक्रिया हेतु।।।

      Delete
  6. कुछ खोना, कुछ पाना,
    फिर भी बढ़ते जाना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बिल्कुल..ज़िंदगी का सच भी यही है..शुक्रिया।।।

      Delete
  7. बहुत खूब,भावपूर्ण सुंदर रचना...!

    RECENT POST - फागुन की शाम.

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया..आता हूँ आपकी चौखट पे।।।

      Delete
  8. सबसे बड़ी मुश्किल ....मैं एहसास लिखता हूँ ....वो अलफ़ाज़ पढ़ते हैं ...सही कहा है ,किसी ने ......

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी इसी कथ्य को आधार बनाकर ये कविता का सृजन हुआ है...शुक्रिया आपका।।।

      Delete
  9. जोड़ सकता था जो आके
    टूटा हुआ ये सिलसिला…
    पर,
    धोखा यहाँ भी हो गया
    ....गजब के जज्‍बात।
    बेहतरीन... बेमिसाल.... लाजवाब....

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Post Comment