(ये कविता मैंने अपने 18 वे जन्मदिन पर लिखी थी..आज अचानक पुरानी डायरी के पन्ने खंगालते हुए ये किसी तरह मिल गई..जिसे आपके साथ साझा कर रहा हूँ)
चित्र- सौ. उमेश सक्सेना |
कौन कह सकता है कि अंकुर क्या है
जिसे खुद अंकुर भी नहीं जानता, उसे कोई और
कैसे कह सकता है कि अंकुर क्या है?
क्या है वो और कौन होगा, कौन जानता है
रहेगा भी या मिट जाएगा, कौन जानता है।
बन जाएगा बटव़ृक्ष या होगा इक छोटी कली
प्रतिकूलता में पला है या अनुकूलता उसको मिली।।
नहीं जानता वो लघू बीज कि उसका कल क्या है..
फिर कौन कह सकता है कि अंकुर क्या है?
खुशबू देगा जहाँ को या काँटों से युक्त होगा
हलाहल से भरा हो या ज़हर से मुक्त होगा।
निर्भर नहीं उसपे ये कि वो होगा कैसा
मिले जैसा खाद-पानी होगा वो वैसा।।
नहीं जानता वो कि उसका फल क्या है..
फिर कौन कह सकता है कि अंकुर क्या है?
क्या छुपा होगा कहीं मीठे फलों का राज उसमें
या कहीं ठहरा हुआ हो ठंडी हवा का साज उसमें।
सहेगा पतझड़ या फिर खिलेगा बहार में वो
ग़म के सूखे में पले या खुशी की बयार में वो।।
उसका हो निर्माण कैसा इसका प्रमाण क्या है...
फिर कौन कह सकता है कि अंकुर क्या है?
इस छोटे से बीज में यूं तो छुपा संसार है
थोड़े से खाद-पानी का फल मिले अपार है।
ये लघुतर अंश अनेकों अंकुरों को जन्म देता
इतना देने पर भी हमसे रंचमात्र ही कुछ लेता।।
हो बता सकते कि इस लेन-देन का राज क्या है...
तो फिर कौन कह सकता है कि अंकुर क्या है?
अब मैं बताता हूँ तुम्हें कि अंकुर क्या है
जिसे खुद अंकुर भी नहीं जानता कि अंकुर क्या है..
दो पहलु हो सकते हैं इस नन्हें से बीज के
पर अभी न भेद बनते इस अनोखी चीज़ है।
न काँटे होते इसमें न ही फूल की भी महक मिलती
न किसी को चुभन देता, न पत्र से ही पवन मिलती।।
मीठे फलों से युक्त न ही, कड़वाहट का लेश इसमें
न किसी की मदद करता, न किसी को क्लेश इसमे।
भले ही ये वृक्ष बनकर कैसा भी हो जायेगा
पर उस भविष्य का लेश भी इसमें न आने पायेगा।
वृक्ष में तो कदाचित् कपट देखी जा सके
पर ये तो सदा निरपेक्ष-निष्कपट जाना जायेगा।।
अंकुर प्रतीक निर्माण का, प्रतीक है ये जीवन का
ठहराव न इसमें कभी भी, प्रतीक है ये गमन का।
चलते चलो-बढ़ते चलो, इसका ही ये संदेश देता
न प्रीति हो न द्वेष हो, प्रतीक दुःख के शमन का।।
निःराग-निर्द्वेषता को, ये हमें कहता चले
सदा पर से उदासीन, ये बताता ही बढ़े।
पर देखो हालत ज़रा इस मायावी संसार की
सदाचार सबसे चाहते, पर इज़्जत न सत्-आचार की।।
लक्ष्य पे जाने की इच्छा, पर चाहते न कार्य करना
अंकुर बने बिना ही चाहें, बड़ा सा इक वृक्ष बनना।
पूछना है तो पूछो खुद से, इस संसार का रूप क्या है...
क्यूं 'अंकुर' को तंग करते, जो पूछते कि अंकुर क्या है????
बहुत सुंदर ..... बसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई और शुभकामना !!
ReplyDeleteशुक्रिया रंजना जी..आपको भी बधाई
Deleteसकारात्मक भाव से पूर्ण प्रत्येक पंक्ति......बहुत सुंदर....
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteशुक्रिया...
Deleteबहुत खूब ... अपने आप को खोजती रचना .. फिर लक्ष्य को प्राप्त करती ... मार्ग पे बढती ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteशुक्रिया नासवाजी...
Deleteआदरणीय अंकुरजी,
ReplyDeleteसादर नमस्कार
आपका ब्लाग बहुत पसन्द आया । आप जैसे व्यक्तित्व के साथ जुडना सॉभग्य की बत है । हिन्दी लिखना कम आता है । घर में वातावरण पूर्णतया हिन्दी का ही है । मम्मी व्याकर्णाचार्या होकर English में ब्लाग लिखती है । क्योंकि हिन्दी लिखनी नहीं आती । वैसे Internet के अलावा सबकुछ हिन्दी में ही लिखते हैं । आप तो अनुभवी हैं पर हम सब तो नौसिखिये हैं । अगर मेरा ब्लाग आपको पसं आये तो कृपया सदस्य बन जायें । हमारा मार्गदर्शन करें तो आपके आभारी रहेंगे ।
धन्यवाद आपका इस प्यार भरी प्रतिक्रिया के लिये....आता हूं आपके ठिकाने पर...
Deleteबहुत ही बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteबसंत पंचमी कि हार्दिक शुभकामनाएँ....
http://mauryareena.blogspot.in/
शुक्रिया..आपको भी बधाई
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteबसंत पंचमी कि हार्दिक शुभकामनाएँ....
RECENT POST-: बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है
शुक्रिया..आपको भी बधाई
Deleteवाह बहुत सुन्दर कविता, स्वयं से बतियाना कितना अच्छा लगता है।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रवीणजी...
Deleteअब मैं बताता हूँ तुम्हें कि अंकुर क्या है
ReplyDeleteजिसे खुद अंकुर भी नहीं जानता कि अंकुर क्या है..
अपने शब्दों के माध्यम से खुद की तलाश,रचना बहुत अच्छी लगी,,,,,,बधाई
धन्यवाद...
Deleteआपकी कविता आपका और आपके विचारों का ही तो प्रतिबिम्ब है ,
ReplyDeleteशुक्रिया ऐसा मानने के लिये...
Deleteअंकुर प्रतीक निर्माण का, प्रतीक है ये जीवन का
ReplyDeleteठहराव न इसमें कभी भी, प्रतीक है ये गमन का।
...वाह...बहुत सुन्दर सकारात्मक सोच...
बहुत बहुत शुक्रिया कैलाश जी...
Deleteमंगलकामनाएं अंकुर को
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया...
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletebahut hi achhi rachna, saral, goodh.
ReplyDeleteshubhkamnayen
धन्यवाद प्रीति जी...
Deleteअंकुर का कितना सार्थक विस्तार किया है वाकई
ReplyDeleteअब कोई तंग नहीं करेंगे पूछकर कि अंकुर क्या है ? :)
Very good write-up. I certainly love this website. Thanks!
ReplyDeletehinditech
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