आते-मुस्काते
बतियाते-खिलखिलाते
पर जाते-जाते
जाने ये क्यूं कह जाते
कि कहीं हमने आपका कीमती,
वक्त तो नहीं लिया..
कि कहीं हमने आपको
डिस्टर्ब तो नहीं किया।
फिर क्या था,
धीरे-धीरे
हम उनके डिस्टर्ब करने
में खोने लगे
और
उनके डिस्टर्ब न करने से
और भी ज्यादा डिस्टर्ब
होने लगे
पर वो अब भी न समझे
और हमसे ये कहते रहे
कि कहीं हमने आपका कीमती,
वक्त तो नहीं लिया..
कि कहीं हमने आपको
डिस्टर्ब तो नहीं किया।
पर हमें भी समझ न ये आये
जो जाके उन्हें बताए
कि सांसों के चलने से
हसरत मचलने से
दिल के धड़कने से
कोई 'डिस्टर्ब नहीं होता'।।
बेचैनियों का सबब ...बस येही है !
ReplyDeleteपता तो चला ही लिया ,,मुबारक हो :-))
अशोकजी आपका अंदाजा गलत है..बस ऐसे ही लिख दी गई ये कविता :-))
Deleteवैसे आभार आपकी प्रतिक्रिया के लिये...
शायद हमने जुड़ाव को दखलंदाज़ी समझ है ..... बढ़िया लिखा है....
ReplyDeleteशुक्रिया मोनिका जी...
Deleteकि सांसों के चलने से
ReplyDeleteहसरत मचलने से
दिल के धड़कने से
कोई 'डिस्टर्ब नहीं होता'।।
लाजबाब अभिव्यक्ति,,,,
RECENT POST : तस्वीर नही बदली
शुक्रिया धीरेन्द्र जी...
DeleteBeautifully written!
ReplyDeleteRemain undisturbed with all the lovely intrusions!
absolutely right anupamaji...thnx 4 ur cmnt :)
Deleteबहुत बेहतरीन लिखा...
ReplyDeleteशुक्रिया रंजना जी।।।
Deleteसच है, मन की स्थिति है..अब कोई नहीं आये तो मन व्यथित हो जाता है।
ReplyDeleteबिल्कुल सही प्रवीणजी..अकेलापन खुद अपने आप में एक डिस्टर्बेंस है...
Deleteक्या बात है ... जहां सांसों की बात हो वहां तो संजीवनी हैं उका डिस्टर्ब करना भी ...
ReplyDeleteधन्यवाद दिगम्बर जी..
Deleteसांसों के चलने से
ReplyDeleteहसरत मचलने से
दिल के धड़कने से
कोई 'डिस्टर्ब नहीं होता'
बहुत सुन्दर अंकुर जी .मन के भावों को बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया है .
धन्यवाद...राजीव जी।।।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (19.08.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
ReplyDeleteBeautifully written Ankur bhai.....nice :)))
ReplyDeleteमन के भावों की सुन्दर प्रस्तुति .........कृपा मेरे ब्लॉग पर भी पधारे ......धन्यवाद. ........
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