हसरत थी
इस दिल की ज़मीं पे
प्यार का गुल खिलाने की,
एक गुस्ताख़ चाहत थी
आसमां के चाँद को
ज़मीं पे लाने की।
ख़्वाहिश थी
कि अहसास
की बारिश में मन
भीग जाए,
पतझड़ सी तन्हा
ये फ़िज़ा
बीत जाए।
ख़्वाहिशों की भी
अजब दास्ताँ है...
मोहब्बत की बारिश से
मन भी भीगा
पतझड़ भी बीता
बंजर ज़मीं का
सूखापन भी रीता..
पर बारिश तो बारिश है
सनम!
जिससे भीग तो जाती हैं
हथेलियाँ
पर हाथ कुछ
नहीं आता।
सच है, यही तो है जीवन।
ReplyDeleteसही कहा प्रवीणजी।।।
Deletesunder kavita hai sir
ReplyDeleteधन्यवाद अल्तमश।।।
Deleteकोशिशॆ अक्सर कामयाब हो आस होती है उदास ना हॊ
ReplyDeleteख्वहिशॆ अक्सर पूरी होती है परेशान ना हॊ
मौसम का क्या है मेरे भाई
इसका टू मिजाज़ है बदलना
इसके बदलने से निराश ना हॊ
शुक्रिया संगीता दी।।।
Deleteपर बारिश तो बारिश है
ReplyDeleteसनम!
जिससे भीग तो जाती हैं
हथेलियाँ
पर हाथ कुछ
नहीं आता।
कितनी सुन्दर पंक्तियाँ !
बेहतरीन
शुक्रिया शिवनाथ जी।।।
Deleteक्या बात है ,बहुत उम्दा पंक्तियाँ ....
ReplyDeleteधन्यवाद आपका...
Deleteजिससे भीग तो जाती हैं
ReplyDeleteहथेलियाँ
पर हाथ कुछ
नहीं आता।
सही कहा ,
शुक्रिया शौर्यजी।।।
Deleteतेरी तलाश में मेरा वजूद ही न रहा,
ReplyDeleteतबाह कर गई मेरी हस्ती को आरजू तेरी ।।
ताबिश भाई धन्यवाद।।।
Deleteपर इन नासमझ
ReplyDeleteख़्वाहिशों की भी
अजब दास्ताँ है...
मोहब्बत की बारिश से
मन भी भीगा
पतझड़ भी बीता
बंजर ज़मीं का
सूखापन भी रीता..
बहुत खूब !
धन्यवाद सर।।।
Deleteउन भीगी हथेलियों को देखो ...कुछ खट्टी-मीठी यादें ज़रूर उभरेगी ....
ReplyDeleteशुभकामनायें!
सही है अशोकजी..शुक्रिया प्रतिक्रिया के लिये।।।
Deleteबहुत सुंदर भाव और खुबसूरत प्रस्तुति !!
ReplyDeleteरंजनाजी धन्यवाद।।।
Deleteबहुत सुंदर और भावपूर्ण ......
ReplyDeleteशुक्रिया आपका।।।
Deleteजिससे भीग तो जाती हैं
ReplyDeleteहथेलियाँ
पर हाथ कुछ
नहीं आता।
..... सुन्दर पंक्तियाँ !
बेहतरीन
शब्दों की मुस्कराहट पर....तभी तो हमेशा खामोश रहता है आईना !!
संजयजी धन्यवाद..आपकी उन तमाम प्रतिक्रियाओं के लिये जो आपने मेरी तमाम कविताओं पे दी।।।
Deleteये सच है की हाथ कुछ नहीं आता ...
ReplyDeleteपर भीगने से भी कहां है रुका जाता ... यही तो नशा है इस मुहब्बत का ...
बात तो सही कही दिगम्बर जी..पर कई बार ठगाए जाने के अहसास भी होता है..शुक्रिया प्रतिक्रिया के लिये।।।
Deleteसुन्दर पंक्तियाँ !बेहतरीन
ReplyDeleteTruly an Inspirational poem Ankur...I am touched by these lines:
ReplyDeleteपर इन नासमझ
ख़्वाहिशों की भी
अजब दास्ताँ है...
मोहब्बत की बारिश से
मन भी भीगा
पतझड़ भी बीता
बंजर ज़मीं का
सूखापन भी रीता..
पर बारिश तो बारिश है
सनम!
जिससे भीग तो जाती हैं
हथेलियाँ
पर हाथ कुछ
नहीं आता।
Incredible job !!
धन्यवाद महोदय...
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