वो
दिखाने के लियेप्रेम,
रहम और अपनापन
पूछते थे सदा
आदमी की पहचान...
और
लिहाज से ही होती थी
उसपे बरकत
और कीमत
क्युंकि
इस जहाँ में
होना काफी नहीं है
सिर्फ एक इंसान,
पूछते हैं तुमसे
हो तुम हिन्दु
या फिर मुसलमान
पर असल में
नहीं है
ये भी
आदमी की पहचान...
बस रह गये हैं कुछ नाम
वो या तो है
बेवश
भूखा
लाचार
या परेशान...........।।
bhut sahi baat likhi hai aapne
ReplyDeletesundar..
ReplyDeletemere blog par bhi padhariye
http://iwillrocknow.blogspot.in/
धन्यवाद आपका...आता हूँ आपके ठिकाने पे।।।
Deleteइंसानी फितरत...... कितने रूप????....... अच्छी रचना .....
ReplyDeleteशुक्रिया आपका...
Deleteधन्यवाद आपका।।
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना ....!
ReplyDeleteधन्यवाद....
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