Sunday, September 22, 2024

ब्लडी कॉन्ट्रैक्चुअल

एक दौड़ है,

और अनकही जंग भी

जो आमादा है

"कॉन्ट्रैक्चुअल"

खुद को "परमानेंट"

बनाने की होड़ में।

इसलिए देते हैं वो

धरने,

ज्ञापन,

आमरण अनशन की धमकियां भी यदा-कदा।


पर,

दूसरी ओर

एक व्यवस्था है

जो होकर आत्ममुग्ध,

बन अहंकारी

अपने ही गढ़े गये 

किलों के कंगूरो 

पर चढ़

खुद को परमानेंट

मान,

रोकते हैं 

रास्ता

"कॉन्ट्रैक्चुअल"

का।


ताकि

न बढ़ जाएं ये,

न गढ़ जाएं ये

अपने हुनर की 

इबारतों

से कोई

इतिहास।


भूलकर ये, 

कि 

सृष्टि की

निर्मम

व्यवस्था में 

नहीं है

कोई 

"परमानेंट"

होता है रिन्यू

यहां अपने ही 

सत्कर्मों

से 

हर क्षण

नया कॉन्ट्रैक्ट।


इसलिए 

इस नियति की निष्ठुरता

से परिचित हो...

खुशी की तनख्वाह,

संतोष का अप्रैसल,

विनम्रता का हाइक,

पा,

खुद को मिले

इस हर क्षण

के स्वर्णिम कॉन्टैक्ट से

आनंदित हो,

मुस्कुराकर,

जताता है शुक्रिया

प्रकृति का,

ईश्वर का,

नियति का।


हर रोज,

यही, अपना

डरा, सहमा

कुछ कर गुजरने को आतुर

"ब्लडी कॉन्ट्रैक्चुअल"


~अंकुर : 23.09.24

4 comments:

  1. व्यवस्था से आक्रोशित मन की क्षुब्ध अभिव्यक्ति।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २४ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. बहुत प्रभावशाली लेखन, क्या इस अंग्रेज़ी शब्द के लिये कोई समीचीन हिन्दी शब्द भी हो सकता है

    ReplyDelete
  3. जो बात "ब्लडी कॉन्ट्रैक्चुअल" में है वो रक्तिम संविदात्मक में कहां ?

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  4. राजनीति को इंगित करता प्रतीत होने वाला ये मन-उदगार कमोबेश मानव-जीवन के पग-पग का एहसास करा रहा है, चाहे वह कोई रिश्ता (मन से) या स्वयं का शरीर ही क्यों ना हो .. है तो "ब्लडी कॉन्ट्रैक्चुअल" ही ना .. शायद ...

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