Thursday, October 27, 2022

ज़िंदा स्वप्न !!!

बिछोह से उत्पन्न
कोई अतृप्त लिप्सा
जो बनकर टीस रह रही है
ज़ेहन के किसी कोने में
रह-रहकर उठती है
वो अब
कोई ज़िंदा स्वप्न बनकर।


एकदम प्रत्यक्ष
एकदम अनुभूत
हाथ पर रखे आंवले की तरह
स्पष्ट, सजीव और यथार्थ
जैसे नहीं खोया हो तुम्हें,
नहीं गये हो तुम कहीं
और जी रहा हूँ तुम्हें
पहले की ही तरह
सिलसिलेवार ढंग से
स्वप्न में ही सही।

बड़ी अजीब है 
इन सपनों की ओनेइरोलोजी, 
जिसकी परतें
तमाम वैज्ञानिक अध्ययनों
के बाद भी अनसुलझी,
दबी ही रहती हैं।

मसलन,
घटे हुये को अस्वीकार कर
न घटे हुये को साकार कर
रचते हैं स्वप्न, 
अपना ही एक संसार
जिसमें तुम हो,
मैं हूँ
और हैं वो सारे स्वप्न
जो हमने नींद में नहीं;
जागते हुये देखे थे।

और स्वप्नों की
यही सजीवता
घंटों गहन निद्रा ले
जगने के बाद भी
सुषुप्ति का सुकून नहीं,
स्वप्न की थकान
दे जाती है।

नींद से उपजी
मूर्च्छा हटने के घंटों बाद भी
वो स्वप्न ही
यथार्थ के मानिंद
ज़िंदा रहता है
दिल के पटल पर।

पर,
होश आने पर पाता हूँ क्या?
कुछ नहीं!
महज एक ख़याली पुलाव के,
भ्रम को सत्य समझ
छटपटाने के।
क्योंकि,
असल तो यही है
जीवन में रह गये हो तुम
बस इक,
ज़िंदा स्वप्न
और 
मृत हक़ीकत।


7 comments:

  1. घटे हुये को अस्वीकार कर
    न घटे हुये को साकार कर...........jeewan ka jeewant aur jwalant sach.

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  2. जीवन के यथार्थ पर सुन्दर सृजन ।

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  3. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना

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  4. सुंदर काव्य सृजन

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  5. घटे हुये को अस्वीकार कर
    न घटे हुये को साकार कर
    रचते हैं स्वप्नबहुत सटीक एवं सार्थक
    लाजवाब सृजन

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  6. स्वप्नोँ के इतर जीना सरल नहीं होता कभी भी किसी के लिए भी
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  7. होश आने पर पाता हूँ क्या?
    कुछ नहीं!
    महज एक ख़याली पुलाव के,
    भ्रम को सत्य समझ
    छटपटाने के।
    क्योंकि,
    असल तो यही है
    जीवन में रह गये हो तुम
    बस इक,
    ज़िंदा स्वप्न
    और
    मृत हक़ीकत।बहुत सुंदर रचना ह्रदय स्पर्शी आदरणीय शुभकामनाएँ

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