Friday, January 30, 2015

वो ठहरे हुए पल.....

उस शहर की
भागमभाग भरी गलियों से
अब भी
जब कभी भी गुजरता हूँ मैं
मुझे तू उसी तरह
खड़ा मिलता है
किसी पेड़ की छांव के नीचे
मेरे इंतज़ार में ।

बाकायदा
किसी भटके राही के जैसे
अपने एक हाथ से
धूप को रोकता हुआ
अंखियों के ऊपर
माथे के तनिक नीचे 
मेरे इंतजा़र में।

वो कुल्फी का ठेला
वो वर्फ का गोला
वो आधा सिका हुआ होला,
अब भी वहीं पड़ा है...
जो मुझे खिलाने के चक्कर में
गिर गया था 
तेरे हाथ से छिटककर
उस सड़क के किनारे।

कुछ ऐसे ही
वो तेरा अधूरा श्रंगार
लवों पे बिखरा प्यार
घड़ी में बजते चार
और फिर
आने वाले कल का इंतज़ार
जस के तस चस्पा हैं
वैसे ही
किसी फ्रेम में जड़ी 
तस्वीर की तरह।

हाँ,
अब उस सड़क पे
पहले के बनिस्बत
भीड़ तनिक ज्यादा हो गई है
पर उस भरी भीड़ के बीच भी
मैं तुझे
न होते हुए भी 
देख लेता हूं।

सोचो तो,
इक अरसा बीत गया है
पर कुछ दीवानगी सी
अब भी बाकी है
जो झुठलाती है इस बात को
कि 'वक्त गुज़र जाता है'।
कतरा-कतरा
दिन-महीने-साल 
गुजरने के बाद भी
'वो ठहरे हुए पल'
वैसे ही खड़े हैं
बेशर्मों की तरह
इक अनहोनी को
मुमकिन करने के इंतज़ार में।

तू बढ़ रही है
मैं बढ़ रहा हूँ
पर
'वो पल'
साफ इंकार कर रहे हैं
आगे बढ़ने से।
अब करें भी क्या?
वो तुम्हारी-हमारी
तरह अक्लमंद थोड़े ही हैं
उन्हें देखना ही नहीं आता
धर्म-जाति-वर्ग-बिरादरी
की सरहदों को।

8 comments:

  1. वाह...दिल को छूते हुए लाज़वाब अहसास...एक सशक्त प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  2. वो दरख़्त ऐसा ही है ... बंधा उन्ही जड़ों से जिनको छोड़ कर सब निकल गए ... इंतज़ार है उसे उन्ही लम्हों का फिर से ...
    संवेदनशील रचना ... दिल को छूते हुए शब्द ... कुछ यादें ...

    ReplyDelete
  3. sarthak abhiwyakti....dil ko chhute ahsas

    ReplyDelete
  4. वाह बहुत खूब..। बहुत ही सुंदर प्रस्‍तुति...। http://natkhatkahani.blogspot.com मेरी नई पोस्‍ट काबिल पिगी

    ReplyDelete
  5. वो ठहरे हुए पल'
    वैसे ही खड़े हैं
    बेशर्मों की तरह
    इक अनहोनी को
    मुमकिन करने के इंतज़ार में।
    .....दिल को छूते अलफ़ाज़

    ReplyDelete
  6. ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Post Comment