Wednesday, October 30, 2013

रोशनी की चकाचौंध

क्यूं
अफसोस करें हम
कि कुछ भी न होता 
मन का मेरे
क्युं तन्हा
रहे हम हरदम
कि जीवन को घेरे
घनघोर अंधेरे...


क्युं
अपने नसीब को कोसें
कि जो चाहें
वो मिले न हमको
क्युं नाराज़
खुदा से हों
जब सुकुं मिले
न आवारा दिल को...

यूँ अफसोस जताके
हम,
तौहीन करें
अपने जीवन की
तौहीन करें
अपनी साँसों की,
और
वक्त के मृदु संगम की..

सच तो ये है
सनम! सुनो तुम
मिले वही
जिसके लायक हम
गर हो जाये 
सबकुछ मन का
तो 
बात याद रखना वो पुरानी
जिसे सुनाया करती थी,

अक्सर वो काकी
बड़ी सयानी...
कि 
जिंदगी हमारे धीरज का
इम्तिहान,
युंही बस लेती है
और
ज़रूरत से ज्यादा
रोशनी भी
अंधा बना देती है।

Thursday, October 17, 2013

भावुकता बनाम संवेदनशीलता

अक्सर
लोगों के ठहाके देखकर भी
मुझे हँसी नहीं आती
अक्सर
जमाने में दर्द देखकर भी
मेरी अंखियाँ आँसू नहीं बहाती..
अक्सर
सुंदर खूबसूरत नगमों पे भी
मैं झूमता नहीं हूँ
अक्सर
सुनहरी यादों के साये में
मैं घूमता नही हूँ।


इस कद़र मेरी बेरुखी देख 
वो आसानी से कह जाते हैं
कि मुझे प्यार नहीं है
किसी का इंतज़ार नहीं है
इक सलोना दिल नहीं है
खुशनुमा महफिल नहीं है...

पर,
करूँ भी मैं क्या

इसमें कसूर न कोई उनका
वो मेरे लफ्ज़ सुनते हैं
खामोशी नहीं!
और
 मेरी ख़ामोशी
बड़ी खामोशी से
ये बताना चाहती है
कि सनम!
क्षणिक भावुकता 
और परिपक्व संवेदनशीलता में
फ़र्क होता है.....

Friday, October 4, 2013

ख्वाहिशें

ख्वाहिश,
तुम्हें पाने की
दुनिया घुमाने की
    दिल में सजाने की।

ख्वाहिश,
आँसू बहाने की
खुलके मुस्कुराने की
बतिया बनाने की।

ख्वाहिश,
गीत गुनगुनाने की
झूमने-झूमाने की
दूनिया पे छाने की।

दिल के ज़र्रे-ज़र्रे में
ये ख्वाहिशें समायी
ज़िंदगी में छायी..
पर,
नादान ख्वाहिशें ये
हालात नहीं जाने
न अपनों की माने
दस्तूर जमाने के
न तनिक भी पहचाने।


हैं रिवाज़ों के बंधन
हज़ारों हैं अड़चन
लोगों की बातें
बढ़ाती हैं तड़पन।


फिर भी ये ख्वाहिशें
बढ़ती ही जाती
चैन नहीं पाती
कितना सताती

सच, 
ये ख्वाहिशें
बड़ी बदतमीज होती हैं।।

Tuesday, October 1, 2013

प्यार से बचाना

ज़ख्मी,
अब हो गई है
मेरे सोचने की शक्ति,
दिमाग के सारे पट भी
अब बंद हो गये हैं..
हूँ मैं मंदबुद्धि कितना
लगाके दिल
ये तुझसे जाना...
ओ सनम!
इस दिल और दिमाग की
तकरार से बचाना
तेरे प्यार से बचाना।



मेरे दिल के किनारों से
कूटती हैं हरदम
जाने क्यूँ अपना माथा
तेरे चाहत की तरंगें..
मुझे इस मोहब्बत के
ज्वार से बचाना
तेरे प्यार से बचाना।

निंदा की आंधियाँ
न डिगा सकती है मुझे किंचित,
परेशां हैं मुझे करते
तेरी तारीफों के थपेड़े..
इश्क में होने वाली
इस
खुशामदी की बहार से बचाना
तेरे प्यार से बचाना।


गर प्यार है तो उसको
दिल में ही दबा रखना
असहाय खुद को पाता
तेरी बातों के भंवर में..
बस इसलिये ही करता
हूँ गुज़ारिश ये तुमसे
हरदम!
मुझको बहकाने वाले
इस इजहार से बचाना
तेरे प्यार से बचाना।
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