Tuesday, December 31, 2013

नववर्ष की पूर्व संध्या पर




इक टीस तो है तेरे गुज़र जाने की, पर एक खामोश खुशी भी है
उस तालीम के लिए जो तूने मुझे कई मर्तबा ग़मज़दा कर दी है
और यकीन मान वही तालीम तुझे ज़िंदा रखेगी..
सुन ऐ 2013!!! कैलेण्डर बदल जाएगा..
पर रुह के किसी कोने में स्मृतियों के जरिये
चस्पा रहेगा तू, दीवार पे ठुकी किसी कील की तरह।।।

Sunday, December 29, 2013

वो इबादत

बंद करो अब ये
फ़िक्र करना
अपनापन दिखाना
और 
मोहब्बत जताना
इस मोहब्बत से ज्यादा
खुशी देती है अब
तुम्हारी बेरुख़ी...

क्यूंकि मैं

अब जान चुका हूँ
इस फ़िक्र, अपनेपन
और मोहब्बत
के लिबास में छुपे
असली चेहरे को,
झूठा है ये बिल्कुल 
आकाश में खिले 
फूलों की तरह,
बस इसलिये 
अब बंद करो
मुझे बहलाने की सारी
चेष्टायें अपनी
इन मिथ्या चेष्टाओं 
से ज्यादा
खुशी देती है मुझे
तुम्हारी बेरुखी...


तमाम प्यार भरे लफ्ज़
तुम्हारे,

अब दोगुना करते हैं 
मेरी मायुसियां
और सच कहूँ तो
तुम्हारे इन मौजूदा झूठे
लफ्ज़ों से ज्यादा
दुख देती हैं
तुम्हारी वो हरकतें
और दोहरा चरित्र
जो उन अतीत में की हुई
बातों को भी झूठा करार देता है
जिन्हें सच मान
मैं,
तुम्हारी इबादत किया करता था

खैर,
तुम क्या जानों
सच्ची इबादत, आस्था
और मोहब्बत
कितना रोती है
ठगाये जाने पर।।।

Thursday, December 26, 2013

हाँ! कैलेण्डर बदल रहा है...

उस फुटपाथ किनारे
बैठी बूढ़ी का बदन
अब भी अधनंगा है
उस मौसम की मार
झेले किसान की आंख
से बहती अब भी गंगा है...
हाँ कुछ कानून और
सरकारी फंड
औरत को सुरक्षा देने आये हैं
पर कमबख़्त ये भी
उसकी अस्मिता को लुटने
से न बचा पाये हैं...
वो बेरोजगार लड़का
अपनी जेब में आज भी
सेल्फास लेके निकलता है
समाज़ के दकियानूसी
रिवाज़ों का मिजाज न
तनिक भी बदलता है...
और सुना है कि
उन भ्रष्ट लोगों को भी
क्लीन चिट मिल गई है
मानो न्याय की इमारत ही
अपनी जमीन से हिल गई है
कुछ भी तो नहीं बदला
वही शासन
वही आसन
वही लोग और
कुछ वैसे ही रोग

अरे हाँ!!!
ज़रा दीवार पे तो देखो
कैलेण्डर बदल रहा है...
चलो मिलके जश्न मनाते हैं.....

Saturday, December 14, 2013

सूरत और सीरत

क्यूं मसले जाते हैं
कोमल फूल
क्यूं चढ़ती है
सुनहरी परतों पे धूल
तितलियों को
कहो आखिर
खूबसूरती का
क्या सिला मिला है
वासना का हर तरफ
जब बढ़ रहा यूं
सिलसिला है...
सच,
अच्छी सूरत भी क्या
बुरी चीज़ है..जानम!
जिसने भी देखा
बुरी नज़र से देखा।।

क्यूं माफी को कमजोरी 
समझे ये दुनिया

क्यूं झुकने को बेवशी
माने ये दुनिया
वृक्ष चंदन के ही आखिर
कटते हैं क्यूं इस जहाँ में
नेक फितरत का न जाने
मोल आखिर क्यूं जहाँ ये...
सच,
अच्छी सीरत भी क्या
 बुरी चीज़ है..जानम!
जिसने भी पायी
ठोकर ही खायी।।
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