हसरत थी
इस दिल की ज़मीं पे
प्यार का गुल खिलाने की,
एक गुस्ताख़ चाहत थी
आसमां के चाँद को
ज़मीं पे लाने की।
ख़्वाहिश थी
कि अहसास
की बारिश में मन
भीग जाए,
पतझड़ सी तन्हा
ये फ़िज़ा
बीत जाए।
ख़्वाहिशों की भी
अजब दास्ताँ है...
मोहब्बत की बारिश से
मन भी भीगा
पतझड़ भी बीता
बंजर ज़मीं का
सूखापन भी रीता..
पर बारिश तो बारिश है
सनम!
जिससे भीग तो जाती हैं
हथेलियाँ
पर हाथ कुछ
नहीं आता।