चलो फिर करते हैं
कुछ बेबुनियाद सी बातें
जिनमें न कोई अर्थ हो
न भावों का गर्त हो
न लम्हों का विवर्त हो
भले भ्रम का ही आवर्त हो...
कुछ बेबुनियाद सी बातें
जिनमें न कोई अर्थ हो
न भावों का गर्त हो
न लम्हों का विवर्त हो
भले भ्रम का ही आवर्त हो...
फिर इक बार चलते हैं
जज़्बातों के उस सफ़र में
जहाँ जागा दिल में प्यार हो
तुमसे मिलने का इंतज़ार हो
मुश्किल से फिर इज़हार हो
और लवों पे इकरार हो....
चलो पीते हैं फिर
जहाँ बार-बार लड़ाई हो
तुमसे रुसवाई हो
हंसी और रुलाई हो
मिलन हो-जुदाई हो...
हाँ चलो न! छूते हैं फिर
उस बेसुधी के गगन को
जहाँ उनींदी आंखो से दिल परेशान हो
बेहुदी आदतें करती हैरान हो
रतजगों के बावजूद खुशनुमा विहान हो
नासमझ ख्वाबों का अपना आसमान हो....
पर क्या बाकई अब लौटना मुमकिन होगा
या बेरहम हक़ीकत भरा ही हरदिन होगा
अब लौटना है उसी भ्रम की धरा पे
जो हो समझ व वैभव के सख़्त यथार्थ से दूर
और हो उन्हीं नादानियो के रस से भरपूर
पर अफ़सोस हम अपने असल में ही
कुछ ऐसे जड़ गये
मानो जीते-जी ही
किसी ताबूत में गड़ गये
मौकापरस्ती की लत में हो अंधे
न जाने क्युं इतना, हम आगे बढ़ गये...
न जाने क्युं इतना, हम आगे बढ़ गये।।।