Friday, August 23, 2013

बारिश

हसरत थी
इस दिल की ज़मीं पे
प्यार का गुल खिलाने की,
एक गुस्ताख़ चाहत थी
आसमां के चाँद को
ज़मीं पे लाने की।
ख़्वाहिश थी
कि अहसास
की बारिश में मन 
भीग जाए,
पतझड़ सी तन्हा
ये फ़िज़ा
बीत जाए।


पर इन नासमझ 
ख़्वाहिशों की भी
अजब दास्ताँ है...
मोहब्बत की बारिश से
मन भी भीगा
पतझड़ भी बीता
बंजर ज़मीं का
सूखापन भी रीता..



पर बारिश तो बारिश है 
सनम!
जिससे भीग तो जाती हैं
हथेलियाँ
पर हाथ कुछ
नहीं आता।

Friday, August 9, 2013

डिस्टर्ब

वो 
आते-मुस्काते
बतियाते-खिलखिलाते
पर जाते-जाते
जाने ये क्यूं कह जाते
कि कहीं हमने आपका कीमती,
वक्त तो नहीं लिया..
कि कहीं हमने आपको
डिस्टर्ब तो नहीं किया।


फिर क्या था,
धीरे-धीरे 
हम उनके डिस्टर्ब करने 
में खोने लगे
और
उनके डिस्टर्ब न करने से
और भी ज्यादा डिस्टर्ब 
होने लगे
पर वो अब भी न समझे
और हमसे ये कहते रहे
कि कहीं हमने आपका कीमती,
वक्त तो नहीं लिया..
कि कहीं हमने आपको
डिस्टर्ब तो नहीं किया।


पर हमें भी समझ न ये आये
जो जाके उन्हें बताए
कि सांसों के चलने से
हसरत मचलने से
दिल के धड़कने से
कोई 'डिस्टर्ब नहीं होता'।।