बेचैनियों का गुलदस्ता.....
Monday, November 10, 2025

गलतफहमियों की सुंदरता

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कितनी मनोहर होती है ये— गलतफहमियों की सुंदरता! जहाँ आईने भी सिर झुका दें, क्योंकि सच कहना उनकी फितरत में नहीं। वो सोचता है— हर ताली उसी के ल...
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Friday, October 31, 2025

दाग-धब्बे

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  धब्बे कुछ होने का शंखनाद है और हैं गवाही फतह की सफलता की उजली सतह पर हैं संघर्ष का काला टीका धब्बे गोरे कपोल का हैं काला तिल और सुफेदी के ...
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Sunday, September 22, 2024

ब्लडी कॉन्ट्रैक्चुअल

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एक दौड़ है, और अनकही जंग भी जो आमादा है "कॉन्ट्रैक्चुअल" खुद को "परमानेंट" बनाने की होड़ में। इसलिए देते हैं वो धरने, ज्...
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Thursday, October 27, 2022

ज़िंदा स्वप्न !!!

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बिछोह से उत्पन्न कोई अतृप्त लिप्सा जो बनकर टीस रह रही है ज़ेहन के किसी कोने में रह-रहकर उठती है वो अब कोई ज़िंदा स्वप्न बनकर। एकदम प्रत्यक्ष...
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Monday, October 4, 2021

प्रेम के पलायन की यात्रा

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अहसासात का इक दिया  जगमगाया था जो बुझ गया है वो। अनायास ही नहीं, बड़े ही सिलसलेवार ढंग से... बनकर पहले कशिश,  फिर तड़प,  फिर मोहब्बत आदत..  ...
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Ankur Jain
ज़िंदगी को जिंदादिली से जीने का कायल। सपने कई हैं पर कोई भी जिंदगी से बड़े नहीं, बस इसीलिये दौड़ने से ज्यादा थमे रहने में मशगूल। कुछ करने की अपेक्षा साक्षी बने रहना ज्यादा भाता है कोई इसे मेरा निकम्मापन कहे तो कहे। खैर, मार्च 2014 से डीडी न्यूज भोपाल में बतौर कॉपी एडिटर कार्यरत। इससे पहले भोपाल की ही पीपुल्स युनिवर्सिटी में करीब तीन वर्ष तक अध्यापन। टोडरमल दि. जैन सिद्धांत महाविद्यालय से स्नातक कर आगे की पढ़ाई हेतु मीडिया संस्थानों का रुख किया। ज़िंदगी की कई विपरीत परिस्थितियों से कुछ इल्म भी हुआ बाकी तालीम के खर्चों की रसीदें भी बहुत जुटाई। मीडिया अध्ययन में पीएचडी, एमएससी (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया), एमफिल (मास कम्युनिकेशन), एमए (हिन्दी, फिलोसोफी, हिस्ट्री एवं एजुकेशन) की उपाधियां अहंकार बढ़ा रही हैं। दुनिया घूमने, फिल्में पढ़ने और किताबें देखने का भी शगल है और कुछ कुछ लिखने की कुलबुलाहट भी बनी रहती है जब विचार ज्यादा ही उधेड़बुन ज़ेहन में करते हैं तो उनमें से कुछ इस ब्लॉगोस्फियर पर उड़ेल देता हूँ। "ये हौसला कैसे झुके" नामक पुस्तक का लेखन। कई पत्र-पत्रिकाओं में लेख भी प्रकाशित। अनेक शोध संगोष्ठियों में शोध पत्र प्रस्तुत, जिनमें वर्ष 2023 में युनिवर्सिटी ऑफ लंदन का शोधपत्र भी शामिल, बस इतना सा खुद ने कुछ बोलने-बताने के लिये किया है। बाकी तो जब मिलो तो खुद ही निर्णय करना।
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