बेचैनियों का गुलदस्ता.....
Sunday, September 22, 2024

ब्लडी कॉन्ट्रैक्चुअल

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एक दौड़ है, और अनकही जंग भी जो आमादा है "कॉन्ट्रैक्चुअल" खुद को "परमानेंट" बनाने की होड़ में। इसलिए देते हैं वो धरने, ज्...
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Thursday, October 27, 2022

ज़िंदा स्वप्न !!!

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बिछोह से उत्पन्न कोई अतृप्त लिप्सा जो बनकर टीस रह रही है ज़ेहन के किसी कोने में रह-रहकर उठती है वो अब कोई ज़िंदा स्वप्न बनकर। एकदम प्रत्यक्ष...
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Monday, October 4, 2021

प्रेम के पलायन की यात्रा

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अहसासात का इक दिया  जगमगाया था जो बुझ गया है वो। अनायास ही नहीं, बड़े ही सिलसलेवार ढंग से... बनकर पहले कशिश,  फिर तड़प,  फिर मोहब्बत आदत..  ...
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Saturday, May 23, 2020

ख़बर के शूरवीर...

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कोरोना संकट के इस दौर में मीडियाकर्मियों द्वारा भी जिस तत्परता से अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया जा रहा है वह सराहनीय है अफसोस इन कोरोना यो...
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Saturday, January 5, 2019

बगल वाली सीट

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क्लासरूम में अर्थशास्त्र की शायद उस कक्षा के बीच खाली पड़ी अपनी बैंच के बगल में यकायक आ बैठा था कोई और फिर मुश्किल था समझना जीडीपी ...
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Ankur Jain
ज़िंदगी को जिंदादिली से जीने का कायल। सपने कई हैं पर कोई भी जिंदगी से बड़े नहीं, बस इसीलिये दौड़ने से ज्यादा थमे रहने में मशगूल। कुछ करने की अपेक्षा साक्षी बने रहना ज्यादा भाता है कोई इसे मेरा निकम्मापन कहे तो कहे। खैर, मार्च 2014 से डीडी न्यूज भोपाल में बतौर कॉपी एडिटर कार्यरत। इससे पहले भोपाल की ही पीपुल्स युनिवर्सिटी में करीब तीन वर्ष तक अध्यापन। टोडरमल दि. जैन सिद्धांत महाविद्यालय से स्नातक कर आगे की पढ़ाई हेतु मीडिया संस्थानों का रुख किया। ज़िंदगी की कई विपरीत परिस्थितियों से कुछ इल्म भी हुआ बाकी तालीम के खर्चों की रसीदें भी बहुत जुटाई। मीडिया अध्ययन में पीएचडी, एमएससी (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया), एमफिल (मास कम्युनिकेशन), एमए (हिन्दी, फिलोसोफी, हिस्ट्री एवं एजुकेशन) की उपाधियां अहंकार बढ़ा रही हैं। दुनिया घूमने, फिल्में पढ़ने और किताबें देखने का भी शगल है और कुछ कुछ लिखने की कुलबुलाहट भी बनी रहती है जब विचार ज्यादा ही उधेड़बुन ज़ेहन में करते हैं तो उनमें से कुछ इस ब्लॉगोस्फियर पर उड़ेल देता हूँ। "ये हौसला कैसे झुके" नामक पुस्तक का लेखन। कई पत्र-पत्रिकाओं में लेख भी प्रकाशित। अनेक शोध संगोष्ठियों में शोध पत्र प्रस्तुत, जिनमें वर्ष 2023 में युनिवर्सिटी ऑफ लंदन का शोधपत्र भी शामिल, बस इतना सा खुद ने कुछ बोलने-बताने के लिये किया है। बाकी तो जब मिलो तो खुद ही निर्णय करना।
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