क्यूं
अफसोस करें हम
कि कुछ भी न होता
मन का मेरे
क्युं तन्हा
रहे हम हरदम
कि जीवन को घेरे
घनघोर अंधेरे...
क्युं
अपने नसीब को कोसें
कि जो चाहें
वो मिले न हमको
क्युं नाराज़
खुदा से हों
जब सुकुं मिले
न आवारा दिल को...
यूँ अफसोस जताके
हम,
तौहीन करें
अपने जीवन की
तौहीन करें
अपनी साँसों की,
और
वक्त के मृदु संगम की..
सच तो ये है
सनम! सुनो तुम
मिले वही
गर हो जाये
सबकुछ मन का
तो
बात याद रखना वो पुरानी
जिसे सुनाया करती थी,
बड़ी सयानी...
कि
जिंदगी हमारे धीरज का
इम्तिहान,
युंही बस लेती है
और
ज़रूरत से ज्यादा
रोशनी भी
अंधा बना देती है।