Tuesday, October 1, 2013

प्यार से बचाना

ज़ख्मी,
अब हो गई है
मेरे सोचने की शक्ति,
दिमाग के सारे पट भी
अब बंद हो गये हैं..
हूँ मैं मंदबुद्धि कितना
लगाके दिल
ये तुझसे जाना...
ओ सनम!
इस दिल और दिमाग की
तकरार से बचाना
तेरे प्यार से बचाना।



मेरे दिल के किनारों से
कूटती हैं हरदम
जाने क्यूँ अपना माथा
तेरे चाहत की तरंगें..
मुझे इस मोहब्बत के
ज्वार से बचाना
तेरे प्यार से बचाना।

निंदा की आंधियाँ
न डिगा सकती है मुझे किंचित,
परेशां हैं मुझे करते
तेरी तारीफों के थपेड़े..
इश्क में होने वाली
इस
खुशामदी की बहार से बचाना
तेरे प्यार से बचाना।


गर प्यार है तो उसको
दिल में ही दबा रखना
असहाय खुद को पाता
तेरी बातों के भंवर में..
बस इसलिये ही करता
हूँ गुज़ारिश ये तुमसे
हरदम!
मुझको बहकाने वाले
इस इजहार से बचाना
तेरे प्यार से बचाना।

16 comments:

  1. प्यार को बचा कर रखना स्वाभाविक है

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    1. सही कहा प्रवीणजी..

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    1. शुक्रिया...धीरेंद्र जी।।

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  3. बहुत सुन्दर प्यार को सहेजना ज्यादा जरुरी है .....

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    1. सही कहा कौशल जी..धन्यवाद प्रतिक्रिया हेतु।।

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  4. सोच का विस्तार..अनंत हैं। वेदना वाले...बेंधते शब्द....। हसरतों के लिफाफे खुल रहें है....।अच्छी खबर आएगी।चोट लगते रहना चाहिए। मन में हाहाकार मचते रहना चाहिए। बेचैनियों के बेचने से ज्यादा बोली...गोली की तरह सुला देती है सुलगा देती। गदर इस गुलदस्ते में भी होना चाहिए।

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    1. धन्यवाद विजय भाई....आपकी इन खूबसूरत शब्दों से सजी प्रतिक्रिया के लिये।।।

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  5. वाह !!! बहुत ही बढ़िया रचना !

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  6. ज़ख्मी,
    अब हो गई है
    मेरे सोचने की शक्ति,
    दिमाग के सारे पट भी
    अब बंद हो गये हैं..
    ............यही तो हो है बेचैनियो का गुलदस्ता

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    1. शुक्रिया संजय जी..इस खूबसूरत कमेंट के लिये..

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  8. धन्यवाद राजीवजी..

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