Thursday, October 17, 2013

भावुकता बनाम संवेदनशीलता

अक्सर
लोगों के ठहाके देखकर भी
मुझे हँसी नहीं आती
अक्सर
जमाने में दर्द देखकर भी
मेरी अंखियाँ आँसू नहीं बहाती..
अक्सर
सुंदर खूबसूरत नगमों पे भी
मैं झूमता नहीं हूँ
अक्सर
सुनहरी यादों के साये में
मैं घूमता नही हूँ।


इस कद़र मेरी बेरुखी देख 
वो आसानी से कह जाते हैं
कि मुझे प्यार नहीं है
किसी का इंतज़ार नहीं है
इक सलोना दिल नहीं है
खुशनुमा महफिल नहीं है...

पर,
करूँ भी मैं क्या

इसमें कसूर न कोई उनका
वो मेरे लफ्ज़ सुनते हैं
खामोशी नहीं!
और
 मेरी ख़ामोशी
बड़ी खामोशी से
ये बताना चाहती है
कि सनम!
क्षणिक भावुकता 
और परिपक्व संवेदनशीलता में
फ़र्क होता है.....

23 comments:

  1. भावुकता का कालखण्ड सीमित होता है, संवेदनशीलता वृहद परिप्रेक्ष्य में दिखती है।

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    1. एकदम सत्य वचन..शुक्रिया प्रतिक्रिया हेतु।।

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  3. भावुकता क्षणिक होती है
    और परिपक्व संवेदनशीलता स्थाई रहती है .... !

    RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.

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    1. जी शुक्रिया..आता हूँ आपके दर पे...

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  4. इस कद़र मेरी बेरुखी देख
    वो आसानी से कह जाते हैं
    कि मुझे प्यार नहीं है
    किसी का इंतज़ार नहीं है
    इक सलोना दिल नहीं है
    खुशनुमा महफिल नहीं है...
    बहुत सुंदर पंक्तियाँ.
    नई पोस्ट : लुंगगोम : रहस्यमयी तिब्बती साधना

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    1. धन्यवाद राजीव जी..

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  5. क्षणिक भावुकता
    और परिपक्व संवेदनशीलता में
    फ़र्क होता है.....
    ...............सच्चाई बयाँ करती सुंदर पंक्तियाँ...!!!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया संजय जी...आपके संदेशों से अभिभूत हूं।।

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  6. भावुकता क्षणिक ज़रूर होती है ..किन्तु उस समय काव्य सृजन अच्छा हो जाता है ..मेरे भी ब्लॉग पर आये

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (21.10.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .

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  8. बहुत सुंदर और उम्दा अभिव्यक्ति...बधाई...

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    1. धन्यवाद प्रसन्न जी...

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  9. भावुकता क्षणिक हो या लंबी ...जीवन का असली रस तो इसी में है ... वेदनाओं का सैलाब उम्र भर बहता रहे हो क्या बात है ...

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  11. khubsurat abhiwyakti....soch gahri....

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