Thursday, January 1, 2015

बीते तो हम है..साल नहीं !

आंसू,
आंख से निकल चुकने 
के बाद भी
ज़िंदा रहते हैं
कुछ वक्त
सीलन लिये
कोमल कपोलो पर।

ज़ख्म,
भर चुकने के बाद भी
रिस उठते है
कई मर्तबा फिर
ठेस
तनिक सी खाने पर।

और वो तूफाँ,
गुज़र जाने के बाद भी
देता है
अपना परिचय
खुद के बनाये
उजाड़ के ज़रिये।

कहो तो ज़रा!
है भला कौन?
जो असल में
बीत पीता है..
खुद के 
बीत जाने के बाद।

ये ऋतुएं,
ये दिन-ये रात,

ये रोशन फिज़ाएं।
ये ग़म-ये खुशियां
ये चंचल अदायें...
सब कुछ,
फिर-फिर तो लौट
आते हैं
जाने के बाद।

तो आखिर!
करें ग़म जाने का 
किसके?
और
आने पे किसके हम
करें रोशन समां?
सब ही तो
आके जाते हैं
और जाकर
फिर लौट आते हैं।
गर न लौटे तब भी वे
यादों में खिलखिलाते हैं।

तो कहो न!
बीता है आखिर कौन?
क्या 2014?
नहीं..कतई नहीं,
वो तो अब भी
रूह की दीवार में ठुकी
स्मृतियों की कील पे
बाक़ायदा टंगा है।
हाँ...
कुछ वरक़ मेरे ही
पलट गये हैं।

8 comments:

  1. वाह...बहुत गहन उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...

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  2. कुछ वरक मेरे ही पलट गये हैं। बहुत सही और बहुत खूब। शुभ नववर्ष।

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  3. Bahut sunder va gahre bhaaw rachna ke...navvarsh mangalmay ho

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  4. अच्छी कविता.
    नववर्ष मंगलमय हो.

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  5. ऐसे ही टंगा रहता है हर साल यादों के झरोखे में ...
    लाजवाब रचना है ...
    नव वर्ष मंगलमय हो ...

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  6. बहुत खूबसूरती से लिखते हैं आप ....वाह

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  7. खट्टी-मीठी यादों से भरे साल के गुजरने पर दुख तो होता है पर नया साल कई उमंग और उत्साह के साथ दस्तक देगा ऐसी उम्मीद है। नवर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

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