Thursday, April 3, 2014

मेरा अर्धसत्य

रूह की
पुरानी पड़ चुकी
दिवारों की 
पपड़ियों को उखाड़ते हुए
वो जानना चाहते थे
पूरा सच...
गालों पर गड्ढे
बनाने वाली
नकली मुस्कान के
पीछे की हकीकत..

और बस इसलिये
युं ही उन्होंने
हमसे दिल लगाया
बहलाया
फुसलाया
और जब उनका
सुरूर हम पर छाया
तो फिर एक दिन
मुस्काते चेहरे पे
चुपचाप थूककर
चले गये वो
जानने के लिये
हमारी शख्सियत का
पूरा सच..

पर बेशर्म शक्ल ये
फिर भी मुस्काती रही
गड्ढे गालों के
दिखाती रही
और
लाख मशक्कत के बावजूद
भी वो जान पाये सिर्फ
'मेरा अर्धसत्य'

18 comments:

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    1. कोई न देखें, इस अर्धसत्य के पीछे छुपे चेहरे..शुक्रिया प्रतिक्रिया के लिये। आता हूँ आपकी पोस्ट पे।

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  2. katu satya ko rekhankit karti rachna ....

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    1. आभार आपका प्रतिक्रिया के लिये।।।

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    1. शुक्रिया आपका।।।

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  4. पर बेशर्म शक्ल ये
    फिर भी मुस्काती रही

    ....कुछ तो बात है ....:))

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    1. बात तो है ही संजय जी तभी तो ये कविताएं अठखेलियां करती हैं :)

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  5. यूँ ही बीत जाता है समय उनके आने के बाद ... शब्द खो जाते हैं ... वो लेजाते हैं एक अर्ध-सत्य हमेशा कि तरह ... प्रेम कि गहरी भिव्यक्ति ...

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    1. शुक्रिया दिगम्बर जी...

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  6. अर्धव्यक्त था अर्धसत्य।

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    1. ये अर्धसत्य, अर्धव्यक्त रहे तो ही उत्तम है :)

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  7. कौन जानेग व्यथा इस मौन की !!

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    1. ये व्यथाएं मौन में ही दबी रहें तो अच्छा है कविताएं तो युंही गुस्ताखी करती हैं उन व्यथाओं को मुखर बनाने की :) शुक्रिया प्रतिक्रिया हेतु।।।

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  8. शुक्रिया सुशील जी।।।

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  9. बहुत सुन्दर है भाई! :)

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