Sunday, December 29, 2013

वो इबादत

बंद करो अब ये
फ़िक्र करना
अपनापन दिखाना
और 
मोहब्बत जताना
इस मोहब्बत से ज्यादा
खुशी देती है अब
तुम्हारी बेरुख़ी...

क्यूंकि मैं

अब जान चुका हूँ
इस फ़िक्र, अपनेपन
और मोहब्बत
के लिबास में छुपे
असली चेहरे को,
झूठा है ये बिल्कुल 
आकाश में खिले 
फूलों की तरह,
बस इसलिये 
अब बंद करो
मुझे बहलाने की सारी
चेष्टायें अपनी
इन मिथ्या चेष्टाओं 
से ज्यादा
खुशी देती है मुझे
तुम्हारी बेरुखी...


तमाम प्यार भरे लफ्ज़
तुम्हारे,

अब दोगुना करते हैं 
मेरी मायुसियां
और सच कहूँ तो
तुम्हारे इन मौजूदा झूठे
लफ्ज़ों से ज्यादा
दुख देती हैं
तुम्हारी वो हरकतें
और दोहरा चरित्र
जो उन अतीत में की हुई
बातों को भी झूठा करार देता है
जिन्हें सच मान
मैं,
तुम्हारी इबादत किया करता था

खैर,
तुम क्या जानों
सच्ची इबादत, आस्था
और मोहब्बत
कितना रोती है
ठगाये जाने पर।।।

14 comments:

  1. ठगे जाने पर विश्वास की जडें हिल जातीं हैं...
    और इससे दुखद कुछ भी नहीं!

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    1. सही कहा अनुपमा जी और शुक्रिया आपकी इस अहम् प्रतिक्रिया के लिये।।।

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  2. खैर,
    तुम क्या जानों
    सच्ची इबादत, आस्था
    और मोहब्बत
    कितना रोती है
    ठगाये जाने पर।।।

    ख़ूबसूरत प्रस्तुति सुंदर रचना...!
    Recent post -: सूनापन कितना खलता है.

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  3. सच कहा है ... सच्ची मुहब्बत को ठगा जाये तो टूट जाता है दिल ... कच्चे धागे कभी जुड़ते नहीं ...

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    1. दिगम्बर जी धन्यवाद प्रतिक्रिया के लिये..कच्चे धागे तो शायद जुड़ भी जाये पर ठगाये जाने पे रिश्तों का जुड़ पाना बहुत मुश्किल है।।।

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  4. बहुत बढ़िया और भावपूर्ण...आप मेरी ओर से को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...

    नयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-तुमसे कोई गिला नहीं है

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    1. जी धन्यवाद आपको भी शुभकामनायें।।।

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  5. मोहब्बत
    कितना रोती है
    ठगाये जाने पर।।।
    ........सच कहा है

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  6. अंकुर यूं ही लिखते रहो ........बहुत खूब

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    1. जी ज़रूर..शुक्रिया आपका।।।

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