Saturday, November 30, 2013

आदमी की पहचान

वो
दिखाने के लिये
प्रेम,
रहम और अपनापन
पूछते थे सदा
आदमी की पहचान...

और

उस पहचान के
लिहाज से ही होती थी
उसपे बरकत
उसकी खिदमत
और कीमत
क्युंकि
इस जहाँ में
होना काफी नहीं है
सिर्फ एक इंसान,
पूछते हैं तुमसे
हो तुम हिन्दु 
या फिर मुसलमान
पर असल में
नहीं है
ये भी
आदमी की पहचान...

उसकी शख्सियत के
बस रह गये हैं कुछ नाम
वो या तो है
बेवश
भूखा
लाचार
या परेशान...........।।

8 comments:

  1. sundar..
    mere blog par bhi padhariye
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

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    1. धन्यवाद आपका...आता हूँ आपके ठिकाने पे।।।

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  2. इंसानी फितरत...... कितने रूप????....... अच्छी रचना .....

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  3. धन्यवाद आपका।।

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