Wednesday, September 4, 2013

खून के घूंट


न जाने कैसे
मर जाते हैं लोग 
भूख से,
प्यास से,
यूँ ही किसी की
आस से,
जबकि 
जीने के लिये
नहीं करना कोई
मशक्कत
और न ही
कोई हरकत..
बस यूँ ही
बैठे-ठाले
न जतन कोई 
निराले
किये बगेर
जी सकते हो 
आप,
बिना 
दाना-पानी के
लगातार 
पीते हुए
खून के घूंट......

15 comments:

  1. दर्द तो दामन में लिपटा रहता है सदा ही... जीने का यह भी एक आसरा है, कौन जाने!

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    1. सही कहा अनुपमाजी...

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  2. जीने के लिये
    नहीं करना कोई
    मशक्कत
    और न ही
    कोई हरकत..
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .

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    1. शुक्रिया आपका राजीव जी...

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  3. अपने में ही कुढ़ते कुढ़ते

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  4. 'अंकुर ' प्यारा सा नाम , मेरे भी बेटे को अंकुर ही कहकर बुलाते हैं, आकर्षण और बढ़ा जब आपका परिचय पाने को अपने ब्लॉग के टिप्पड़ी से फालो करते गूगल प्लस पर आई.. ..ख़ास कर संस्कार और चरित्र को लेकर और अच्छा लगा...
    ''और नेह भी बेटे सा...तुम्हारी तरह मेरे बेटे का Area of Interest बहुत बड़ा है...:)''

    और आपकी रचनाएं तो और भी प्यारी हैं ..अनंत शुभकामनाये उज्जवल भविष्य की !


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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका..आपके इन खूबसूरत लफ्ज़ों से भरी हुई प्रतिक्रिया को पाके काफी प्रसन्नता महसूस की..और अच्छा भी लगा ये जानके कि आपके परिवार में भी कोई मुझसा विद्यमान है..आपके सुपुत्र के लिये भी अनंत शुभेच्छा।।।

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  6. kya khubsurat bhav liye sarthak rachana.....jane kaise mar jate hain log......

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    1. धन्यवाद अपर्णा जी....

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  7. नहीं करना कोई
    मशक्कत
    और न ही
    कोई हरकत..
    .....बहुत सुन्दर पंक्तियाँ अंकुर जी

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