Tuesday, July 23, 2013

औरत

घर मे
मेरी सास को,
ऑफिस में
बॉस को..
ऐतराज है
मेरी झपकियों से
ऐतराज़ है
मेरी सिसकियों से
क्यूँ?
क्योंकि उन्हें
परवाह है मेरी...
जी हाँ,
परवाह है 
मेरे काम की
न कि आराम की
बस! इसलिये
ऐतराज है उन्हें
मेरी झपकियों से
मेरी सिसकियों से।

मायके में
ससुराल में
गुजरते हुए
हर साल में
बस बढ़ती रहती है
मेरी बेचैनियाँ
मैं हूँ बस एक
'रोबोट'
इस जहाँ के लिये
जिसमें न हैं
अहसास,
तमन्नाएँ,
न ही भावनाएँ कोई..
और करना है अपना काम
बिना थके
बिना रुके
बिना झुके
और बस! इसलिये
ऐतराज है उन्हें
मेरी सिसकियों से
मेरी झपकियों से।

कभी मन की चुभन
कभी दुखता बदन
न सोने देता मुझे
और कभी गर
लग भी जाये आँखे
तो सैंया जगा देते हैं
रातों में
लगा लेते हैं अपनी 
बातों में
और फिर,
गुज़र जाती है
मेरी एक और रात
बिना सोये
करवट बदलते
ढूंढती अपनी हस्ती
अपने मन की बस्ती
जहाँ लोग ये माने
कि
औरत बदन के परे भी
कोई चीज़ है....

18 comments:

  1. संवेदनपूर्ण पंक्तियाँ..

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    1. धन्यवाद प्रवीणजी...

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  2. बहुत सटीक कहा आपने , सुंदर और मार्मिक रचना , शुभकामनाये

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    1. शौर्य जी धन्यवाद।।।

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  3. पूरी रचना सुंदर और मार्मिक, लाज़वाब है,हार्दिक शुभकामनायें

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    1. उत्साहवर्धन हेतु साधुवाद अशोक जी।।

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  4. बेहतरीन.... नारी संवेदना से भरी हुई......
    शुभकामनायें!!

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    1. धन्यवाद रंजना जी।।।

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  5. नारी मन की संवेदना को बखूबी उकेरा है आपने
    बहुत खूब!

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    1. शिवनाथ जी शुक्रिया।।।

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  6. न ही भावनाएँ कोई..
    और करना है अपना काम
    बिना थके
    बिना रुके
    बिना झुके
    और बस! इसलिये
    ऐतराज है उन्हें
    मेरी सिसकियों से
    मेरी झपकियों से।

    बहुत सुंदर, औरत के मन को समझती सी रचना ।

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  7. शुक्रिया आशाजी।।।

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  8. शुक्रिया सुशील जी...

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  9. अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.

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  10. Indeed you speak for a woman's heart

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