Thursday, July 18, 2013

ख़याल....

खैरियत ख़फा है अब हमसे
अब तो यहाँ हाल, बेहाल है..
जवाब न अब किसी एक का
हुए खड़े कई सवाल हैं।
न मिलकर भी बिछड़ने का
होता अक्सर मलाल है..
तुम्हें खोने से भी भयंकर
तुम्हें खोने का खयाल है।।

बंद होठों से भी अक्सर, होती बातें हजारों
बहके कदम अब इन्हें संभालों न यारों..
दिमाग है दिवाना और दिल में सलवटें हैं
नींद न है बिस्तरों पे बस खाली करवटें हैं।
ये कैसी खुशमिजाजी, जिसमें
खुशी है कम और दर्द विशाल है..
तुम्हें खोने से भी भयंकर
तुम्हें खोने का खयाल है।।

मंजिल वही है लेकिन रस्ते खो गये हैं
जागे हैं सपने सारे, पर हम ही सो गये हैं
ये तिलिस्मी नीर कैसा
पीके जिसे प्यास बढ़ रही है
ये शिखर उत्तंग कैसा
छूके जिसे श्वांस चढ़ रही है।
तड़प-बेचैनी-बेखुदी बस
यही इस जज़्बात की मिशाल है
तुम्हें खोने से भी भयंकर
तुम्हें खोने का खयाल है।।
खैरियत ख़फा है अब..........

18 comments:

  1. वाह, मन में धीरे धीरे उतरती पंक्तियाँ..

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    1. धन्यवाद प्रवीणजी...

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    1. धन्यवाद धीरेन्द्र जी।

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  3. ये ख्याल ही ....बेचैनियों का गुलदस्ता बनाते हैं ...:-))
    शुभकामनायें!

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    1. सही कहा अशोकजी..
      धन्यवाद आपका।।

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  4. वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया आपका...

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  5. बेचैन करता खोने का ख्याल गूंथ कर भाव सरिता बन गया है...!
    शुभकामनाएं!

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    1. जी धन्यवाद अनुपमाजी।

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  6. बेहतरीन अभिव्यक्ति

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया आपका..

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  7. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति.

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया आपका

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  8. जीवन की अनकही मनोदशा को व्यक्त करती
    बहुत सुंदर अनुभूति
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------

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    1. जी जरूर आता हूँ आपके ब्ल़ॉग पर..
      बहुत-बहुत शुक्रिया आपका..

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  9. बेहतरीन ख्यालों का कुछ बैचेनियों का गुलदस्ता सजने लगा है अब ...

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    1. सब आप लोगों के स्नेह का प्रतिफल है नासवाजी...

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