Saturday, April 18, 2015

वो बिखरा आशियां !!! (50 वी पोस्ट)

उस रोज़
शायद कुछ यही तिथि होगी
जब हमने-तुमने की थी
अपने सुर्ख जज़्बात की रज़ामंदियां
और साथ ही हुई थी शुरुआत
उन सपनों के घरोंदो पर
दीवारें बनाने की।

और तकरीबन कर ही ली थी
कोशिश पूरी
उस तामीर को आशियां बनाने की
पर इससे पहले
कि डलती उसपे छत
कुछ समझौतों
रिवाज़ों
और कौमी फरमानों की...
ढह गई वो इमारत!
वर्ग-बिरादरी
और कुछ मिथ्या रस्मों की
आंधियों में।

हमारे कसमों-वादों
और अनगिनत अहसासों
का वो मिट्टी-गारा
अब भी वहीं पड़ा है
ज़मीं पर होकर भी
ज़मींदोज होने के इंतज़ार में।


और मैं, 
उस न बन सके आशियाने 
को जब भी देखता हूँ
उस रास्ते से गुज़रते हुए,
बस इक यही ख़याल आता है
कि ये क्या हो सकता था
और क्या हो गया।

तुम और मैं
अब भी जब-तब
उन आंधियों को ही
जिम्मेदार कहते हैं
उस बिखरे भवन के लिये..
बिना ये देखे-बिना ये जाने
कि
नींव हमारी ही कमज़ोर थी।


कहने को 
तेरी-मेरी अपनी ही दुनिया
अपना ही आशियां
और उसपे एक मजबूत छत है
पर उस भवन में
जाने क्युं?
मैं 'तुझे'
और तू 'मूझे'
ढूंढता है।

17 comments:

  1. lagta hai purana dard abhi gaya nahi hai ...

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    1. ताबिश भाई मेरा जबाव मंथन ब्लॉग वाले अभिषेक जैन ने दे दिया है और आप तो जानते ही है विश्व के सर्वोत्तम राग का सृजन दर्द में ही होता है इसलिए सृजनधर्मिता बनाये रखने के लिए सीने के किसी कोने में दर्द को जगाये रखना अच्छा है :)

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  2. दर्द अगर इतनी रचनात्मकता दे दे तो दर्द अच्छा है

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  3. कमजोर नीव से आशियाना टूटता ही है पर कई बार हिम्मत चाहिए होती है .. समाज से लड़ने की शक्ति ... रिवाजों की आंधियां तो हर समय में रही हैं ...
    भावपूर्ण रचना ...

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  4. सुन्दर भावयुक्त रचना

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  5. आपकी इस उत्कृष्ट रचना का उल्लेख सोमवार (20-04-2015) की चर्चा "चित्र को बनाएं शस्त्र, क्योंकि चोर हैं सहस्त्र" (अ-२ / १९५१, चर्चामंच) पर भी किया गया है.
    सूचनार्थ
    http://charchamanch.blogspot.com/2015/04/20-1951.html

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  6. वियोग और दुःख ही जनम देते हैं इक खूबसूरत रचना को।

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  7. बहुत सुंदर... दिल से निकले जज्बात..

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  8. पुरानी चोटें कभी-कभी ज्यादा ही कसकती हैं, दिल है तो दर्द होगा ही। सुंदर अहसास भरी कविता।

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  9. बहुत खूब
    मंगलकामनाएं आपको !

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  10. बहुत ही सुंदर रचना।

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  11. Bhut hi sundar brother.... very very nice

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  12. दिल से निकले जज्बात.. अंकुर भाई
    बहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें

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