Thursday, February 13, 2014

वेलेन्टाइन

मोहब्बत का क़त्ल कर 
एक संस्कृति पनपी है 
जहाँ समाज है 
रिवाज़ है 
और ज़िंदगी मोहताज़ है 
महज 
कोरी वासना के लिए.… 
और इस संस्कृति में 
वो सब कुछ है 
जिसमे प्रेम आकार लेता है 
पर अफ़सोस 
गुम हो चुका है
एक अदद प्रेम ही कहीं।

एक सामीप्य को 'डेट' की संज्ञा दे
बस हवस की पूर्ति के
जतन जारी है.…
पर डेट के नाम पे
प्रेम की तो कही डेथ ही कर दी है
इस ज़माने ने...

त्याग, समर्पण और निस्वार्थ
वृत्ति के अर्थों को भुला
सिर्फ कोरी लीपापोती
ढोंग
और झूठा दिखावा ही
रह गया है प्रेम


प्रेम की क़ातिल 
इस संस्कृति  ने 
संवेदनाओ की मौत पे, 
महज़ खाना पूर्ति के लिए 
पकड़ा दिया है 
समाज को 
एक महक रहित गुलाब,
एक थोथा ग्रीटिंग कार्ड 
और वेलेंटाइन का लॉलीपॉप।।।  

14 comments:

  1. प्रेम की गहराई से समझें हम, दिन में न समेंटे।

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  2. याने कमाल है कि हमें इस blog का पता नहीं.....?????
    कविताएँ हमसे छिपी रहीं ??? सालाफिल्मी पढ़ते रहे :-)

    बहुत बढ़िया कविता,,,बाकि भी पढ़ती हूँ तसल्ली से..
    अनु

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    1. चलिये कोई बात नहीं..देर आयी दुरुस्त आयी। स्वागत है आपका इस गुलदस्ते में....

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  3. मोहब्बत का क़त्ल कर
    एक संस्कृति पनपी है .......बहुत बढ़िया...

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    1. शुक्रिया कौशल जी....

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  4. कई बार लगता है ऐसा पर जब इन सब से परे प्रेम के ही बारे में सोचो तो लगता अहि प्रेम है ... जीने के लिए .. निभाने के लिए न की बाँधने के लिए किसी एक दिन में ...

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    1. सही कहा नासवाजी..लेकिन मौजूदा दौर में ये बातें लोगों को आउटडेटेड लगती हैं।।।

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  5. achha likha hai....
    par prem hai, vahi jo saral hriday mein aaj bhi basta hai, fulta hai.......

    shubhkamnayen

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    1. शुक्रिया प्रीति जी...

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  6. स्नेह भरे सुन्दर शब्द. अति सुन्दर....वैलेंटाइन प्रस्तुति

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    1. शुक्रिया संजय जी....

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  7. बहुत सार्थक और सटीक कटाक्ष है बे -चैनियों का गुलदस्ता :

    प्रेम की क़ातिल
    इस संस्कृति ने
    संवेदनाओ की मौत पे,
    महज़ खाना पूर्ति के लिए
    पकड़ा दिया है
    समाज को
    एक महक रहित गुलाब,
    एक थोथा ग्रीटिंग कार्ड
    और वेलेंटाइन का लॉलीपॉप।।।

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    1. धन्यवाद वीरेन्द्र जी...

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