आज फिर जब मैंने खंगाली
अपने ख़यालों की अलमारी
तो एक मर्तबा फिर
वो आधे-अधूरे जज्बात
मेरे पैंरों तले..
और मुझे फिर
ये अहसास हुआ
कि मैं दबा हुआ हूँ
तेरे बोझ तले
क्युंकि पड़ा हुआ है
तेरा सामान,
बाकायदा
मेरे रूह की दीवारों में
जड़ी हुई
ख़यालों की अलमारी के अंदर
सुरक्षित।
कसम से
बहुत अखरता है
यूं तेरा आधा-अधूरा जाना
वो संग बिताये लम्हों की लाखों यादें
वो देखे हुए हज़ारों सपने
जस के तस सुरक्षित है
मेरे पास आज भी...
वो साथ ली हुई
चाय की चुस्कियां
वो आंसू और याद आने पे ली
गई हिचकियां
वो रूठ जाने पे तुझे
मनाने की कोशिशें
वो बचकानी हरकतें
और बेवकूफ ख़्वाहिशें...
उन अहसासों की इबारतों
को भी मिटाना है ख़ासा मुश्किल
जो दिल के पन्नों पे लिख दिये थे
तूने यूं ही घूमते फिरते..
फिर एक दिन
इन तमाम चीज़ों को छोड़कर
तूने कहा मुझे जाना होगा
और तेरे जाने पर भी
न था मुझे कोई ऐतराज़...
किंतु, तूझे जाना था पूरा
न कि आधा-अधूरा
पर अपना सारा सामान
यूं मेरे पास छोड़कर
तेरा चले जाना
कसम से बहुत अखरता है
और अब उस अलमारी में
पड़ा हुआ सामान
हर कभी यूं ही बाहर निकल
अनचाहे ही मेरे सामने आ
कुरेद देता है
गहरे ज़ख्मों पे पड़ी हुई पपड़ी को
और फिर
चीख उठता हूँ मैं, दर्द के मारे...
पर अफसोस
वो चीख इतनी ख़ामोश होती है
कि मेरे सिवा कोई और
उसे सुनने की ज़हमत नहीं उठाता...
कसम से
बहुत अखरता है
तेरा आधा-अधूरा जाना।।।