Saturday, November 30, 2013

आदमी की पहचान

वो
दिखाने के लिये
प्रेम,
रहम और अपनापन
पूछते थे सदा
आदमी की पहचान...

और

उस पहचान के
लिहाज से ही होती थी
उसपे बरकत
उसकी खिदमत
और कीमत
क्युंकि
इस जहाँ में
होना काफी नहीं है
सिर्फ एक इंसान,
पूछते हैं तुमसे
हो तुम हिन्दु 
या फिर मुसलमान
पर असल में
नहीं है
ये भी
आदमी की पहचान...

उसकी शख्सियत के
बस रह गये हैं कुछ नाम
वो या तो है
बेवश
भूखा
लाचार
या परेशान...........।।

Saturday, November 16, 2013

बोलते आँसू



आँसू
हैं तो महज पानी
जो दिल की आग से 
बाहर आते हैं
और
बाहर आके दूसरों के
दिलों को जला जाते हैं।
आँसू
है तो खामोश पानी
लेकिन ये भी कमबख्त
चीखते हैं
चिल्लाते हैं।

लेकिन ज़िंदगी में
न सब समझ सकें
इन आँसूओं की 
भाषा
जो होते हैं दिल के पास
बस, वही जाने
असली परिभाषा..

कभी दिल के दर्द को
संग अपने बहा ले जाते हैं ये
कभी उस दर्द को
और गहरा बना जाते हैं ये...

इन आँसुओं में 
भावनाओं का सैलाब है
इन आँसुओं में छुपे
कई हसरतों के ख्वाब है
इन आँसुओं में हैं सवाल
और इन्हीं में सारे जवाब हैं
लेकिन जिंदगी में है कौन वो
जो समझे इन आँसुओं की भाषा
है कौन दिल के पास
जो जाने इनमें छुपी परिभाषा...

लफ्ज़ जब लाचार हो जाते हैं
तब आँसू ही बयाँ करते हैं
दिल की हरकतों को
आँसू ही हैं जो जोड़ें
टूटे हुए सिलसिलों को..

तड़पता हुआ दिल
सिसकती हुई आँखों से
बयाँ करता है अपनी
बेचैनियाँ,
और उस सिसकन से
भीग जाते हैं 
तकिये रातों में...

ग़नीमत है ये आँसू 
बेरंग होते हैं,
नहीं तो सनम!
ये तकिये दिल की
सारी दास्तान
चुगल देते जमाने से.......
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